अभी से बोझ दरख्तों में पड़ रहा क्यूं है
अभी से बोझ , दरख्तों में पड़ रहा क्यूं है
अपनों को तल्राशता आदमी , तनहा--तनहा क्यूं है
बचपन क्यों मल्टीमीडिया के मकड़जाल में , उलझ कर रह गया
बचपन आज , बचपन को तरस रहा क्यूं है
बुजुर्गों के सम्मान पर भी , छा रहे काले बादल
अपने ही आंगन के विशाल दरख्त को , आदमी काटता क्यूं है
क्यों नहीं थम रहा , जिन्दगी के भागने का सफ़र
अपनी ही जिन्दगी को आदमी , जहन्नुम बना रहा क्यूं है
सड़कों पर तड़पते तन , कब तक यूं ही छोड़ते रहेंगे आस
आज का आदमी , आदमी को आदमी समझता नहीं क्यूं है
तनहा - तनहा जिन्दगी को कर लिया , अपनी जिन्दगी का सफ़र
रिश्तों की आगोश में, आज का आदमी समाता नहीं क्यूं है
सिसकती साँसें हो गयीं जिन्दगी का सिला, फिर भी
आज का आदमी , इबादत के गीत गुनगुनाता नहीं क्यूं है
अभी से बोझ , दरख्तों में पड़ रहा क्यूं है
अपनों को तल्राशता आदमी , तनहा--तनहा क्यूं है
बचपन क्यों मल्टीमीडिया के मकड़जाल में , उलझ कर रह गया
बचपन आज , बचपन को तरस रहा क्यूं है
No comments:
Post a Comment