Wednesday, 20 September 2017

तुझे मैं अपने गीतों में ढाल लूं तो चैन आये मुझे

तुझे मैं अपने गीतों में ढाल लूं तो चैन आये मुझे

तुझे मैं अपने गीतों में ढाल लूं , तो चैन आये मुझे
मैं तुझको अपना बना लूं , तो चैन आये मुझे

मैं जानता हूँ , तुझे फ़िक् है हर पल की
अपने आशियाँ को तेरी इबादतगाह बना लूं , तो चैन आये मुझे


कल ही ख्वाव में रूबरू हुआ था , मैं तुझसे
'पती स्लातगाह को तेरी उतादतगाह बना से , तो चैन आये मुझे 
  
तेरे करम से रोशन हुआ हूँ मैं , ए मेरे खुदा
खुद को तुझ पर लुटा दूं , तो चैन आये मुझे

सभी कहते हैं इस जहां के हर एक बन्दे के दिल में , वसता है तू
तेरे हर एक बन्दे में तेरे अश्क़ का दीदार कर लूं , तो चैन आये मुझे

खुद को तेरे दर का चराग करने की रही , बरसों तमन्ना मेरी
खुद को तेरे दर का चराग कर लूं , तो चैन आये मुझे

मेरी कोशिशों , मेरे प्रयासों पर , तेरा करम बना रहे मेरे खुदा
अपनी हर एक कोशिश को तेरी इवादत कर लूं., तो चैन आये मुझे

तुझे मैं अपने गीतों में ढाल लूं , तो चैन आये मुझे
मैं तुझको अपना बना लूं , तो चैन आये मुझे

मैं जानता हूँ , तुझे फ़िक् है हर पल की
अपने आशियाँ को तेरी इबादतगाह बना लूं , तो चैन आये मुझे







ग़मों और मुसीबतों के इस दौर में भी

ग़मों और मुसीबतों के इस दौर में भी

ग़मों और मुसीबतों के ,इस दौर में भी
खुश रहने के ,सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

जब भी खुद से ,रूठ जाता हूँ मैं
खुद को मनाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

उस खुदा की इस ,अनजान दुनिया में
लोगों को दिल के करीब लाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

न जाने क्यों कर हो रहे लोग, एक दूसरे से दूर
'रिश्तों को जीने के ,सौ बहाने ढूंढ लेत हूँ मैं

मुसीबतों के दौर मैं में ही ,याद आता है खुदा उनको
अपनी खुशियाँ उस खुदा के बन्दों से बांटने के , सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

लोग फेर लेते हैं नज़र , न जाने क्यों अपनों से भी
'परायों को भी दिल से लगाने के , सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

क्यों कर कोई स्ठे , इस जिन्दगी से
जिन्दगी को जिन्दादिली से जीने के , सौँ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

ग़मों और मुसीबतों के ,इस दौर में भी
खुश रहने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

जब भी खुद से ,रूठ  जाता हूँ मैं
खुद को मनाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं




जब भी उदास होता हूँ मैं

जब भी उदास होता हूँ मैं

जब भी उदास, होता हूँ मैं
खुद को मुस्कराहट के समंदर में , डुबो लेता हूँ मैं

जब भी अपनों से, बेज़ार हो जाता हूँ मैं
खुद को नए रिश्तों में ,पिरो लेता हूँ मैं

इस फीकी - फीकी दुनिया में , मन जब नहीं लगता मेरा
किसी सरिता के तीर , दो चार गीत गुनगुना लेता हूँ मैं 

प्रकृति के आँचल में कांटे, लोगों ने बो दिए हैं बहुत
नन्हे पौधों से बात कर , खुद को बहला लेता हूँ मैं

चादुकारिता की बातें करते देखे हैं, मैंने कवि बहुत
बालपन को संवारने की ,कवितायें गुनगुना लेता हूँ मैं

लोगों को खुश करने के लोग, ढूंढ लेते हैं बहाने बहुत
बच्चों को खुश करने के , तरीके इजाद कर लेता हूँ मैं

मेरी बात किसी को ,जो बुरी लग जाए.
परवाह किये बिना दो चार और , कवितायें लिख देता हूँ मैं

लोग अपने दामन के फूलों की , खुशबू मे हैं व्यस्त
लोगों के दामन को , खुशबू से भर देता हूँ मैं

जब भी उदास, होता हूँ मैं
खुद को मुस्कराहट के समंदर में , डुबो लेता हूँ मैं

जब भी अपनों से, बेज़ार हो जाता हूँ मैं
खुद को नए रिश्तों में ,पिरो लेता हूँ मैं







एक दिन तुम्हें मेरी याद सताएगी

एक दिन तुम्हें , मेरी  याद सताएगी

एक दिन तुम्हें , मेरी याद सताएगी
तुम मुझे , अपने करीब पाओगी

बीती बातें कुछ हद तक , तुम्हें रुलायेंगी 
तुम मुझे अपने, दिल के आसपास पाओगी 

तनहा रहना होता है कितना मुश्किल , ये पूछो खुद से 
दिल से याद करोगी तो, हर एक रात रोशन हो जायेगी 

यूं ही न बहाओ, अपनी आँखों से मोती 
दिल को दिल से होती है आस, जांन जाओगी 

मुहब्बत के चाहने वालों पर होता है, उस खुदा का करम 
आज नहीं तो कल , मेरी बाहों में समा  जाओगी 

अपने इस एहसासे  - मुहब्बत को कम नहीं होने देना 
एक दिन तुम भी मुहब्बत के गीत गाओगी 

पाक दामन से रोशन रहे ये मुहब्बत का जूनून 
गीत मेरी वफ़ा के भी , एक दिल गुनगुनाओगी 

खुश होंगे चाँद तारे, सितारे और ये फिजां 
जब तुम मेरे आशियाँ का चाँद हो जाओगी 

एक दिन तुम्हें , मेरी  याद सताएगी
तुम मुझे , अपने करीब पाओगी

बीती बातें कुछ हद तक , तुम्हें रुलायेंगी 
तुम मुझे अपने, दिल के आसपास पाओगी 






Monday, 11 September 2017

मुक्तक

१.


मन की कैद से बाहर निकल
अपने विचारों को दो एक खुला आसमां

एक राह मिलेगी तुझको
जो तुझे ले जायेगी मंजिल की ओर

२.

लोग कहते हैं खुदा , नज़र आता नहीं
हमको

किसी की सिसकती आहों का सहारा, 
एक बार बनकर तो देख


3.

किसी के जीवन का सत्य, तुम्हारे जीवन
का सत्य क्यों हो जाए

चलो अपना एक अलग कारवाँ सजाएं
मंजिल की ओर

4.


किसी की खुशियाँ हमारी हुईं , हुईं न
सही

किसी के गम में हिस्सेदारी हो , कुछ
ऐसा करें




5.


दूसरों के बाग से . फूल चुनना होता है
कितना आसान

खुद  का एक बाग रोशन हो ,  आओ कुछ ऐसा करें 

 



कुछ नए एहसास - मुक्तक

१.


किताबों के पन्‍नों को उल्लटकर देखो
इल्म का दीदार होता है ।

क्यों भटकते हैं हम यहाँ से वहां
इल्म का भण्डार यहीं कहीं आसपास |
होता है


२.


सागर में तो देरों नदियाँ समा जाती हैं
इससे वाकिफ हैं हम

खुद को ताज़ सा करो रोशन
तो कोई बात बने

3.


कहीं पानी की दो बूँद की जा रही है बेकार
तो कहीं चार

फ़र्क तो उनको पड़ा जहां एक - एक बूँद को
मानव हो रहा बेज़ार




4.


सितारों के बड़े होने की
कल्पना में मत उल्रझो

सितारों की चमक सा
करो खुद को रोशन


5.



कमल खिलता है कीचड़ में
ये जानते हैं सब

एयरकंडीशनर रूम में बैठ
सपने साकार नहीं होते




मुक्तक

१.

शब्द और विचार ही थे जिनकी धरोहर

वे साहित्य जगत का नूर हो गए


२.

यह जीवन कितनी कल्पना और कितना
सच

किसी नवजात के चेहरे पर मुस्कराहट

लाकर इस सच का एहसास करें 




3.


बालपन को चाँद सितारों की टोह लेने से
मत रोको

एक दिन आयेगा जब वे भी खेलेंगे
सितारों के संग

4.


बालपन को सजाओ और संवारकर देखो

संस्कृति और संस्कारों की धरोहर हो
जायेंगे वो एक दिन


5.


ज़मीं  पर रेंगते जीव से , जीवन की
जद्दोजहद सीखो

पहाड़ की चोटी पर इतराती चढ़ती
चीटियों से जीवन का सत्य जानो


क्यों कर लोग कर लेते हैं जीवन से
किनारा
पक्षियों के आसमां पर उड़ने का मर्म
पहचानो



चंद क्षणिकाएं - मुक्तक

१.

ए चाँद इन बादलों के पार से निकल,
खुद को कर रोशन

अपनी तपिश से इन बादलों को
पिघला दे , कुछ ऐसा कर


२.


कुछ तो सुनिए अपनी, कुछ अपने दिल
की

यूं दूसरों की राह पर चलकर, मंजिल
तलाशा  नहीं करते

3.


सरलता की गोद में गर , पलती है 
विशालता 

तो सरलता से अपने दामन को , हम
रोशन क्यों नहीं करते


4.


हर मुसीबत मुझे पत्थर की तरह,
सख्त बनाती गयी

मैं परिपक्व होता गया , मंजिल मेरे
करीब आती गयी




5.


इस दुनिया में हम कहीं हैं भी कि नहीं ,
ये हमें नहीं मालूम

चलो कुछ सत्य गुनगुनाएं , कुछ सत्य बुनकर
'देखें



चंद नए एहसास

१.

चाँद तारों से पूछ लेंगे
तेरे होने का पता

क्यों छूपे बैठे हो
मेरी निगाहों से दूर

२.

चंद सितारे ज़मी पर क्या  बिखरे
लोगों ने आसमां से नफ़रत कर ली

अनगिनत और खूबसूरत सितारों से रोशन
इस आसमां से ये नाइंसाफी क्यों


3.

इस दुनिया में हम है ही
हम ऐसा क्यूं समझें

किसी ग़मगीन के दर्द का
मरहम हो जाएँ , कुछ ऐसा करें

4.

हर एक मुसीबत,
एक खुशहाल जिन्दर्गी के आईने में ढाल
देगी एक दिन तुझको

क्यों कर मुसीबतों से डरकर
किनारा कर लें


5

क्यों समझते हैं लोग
इतना मुश्किल्र है आसान होना

जब इतना आसां है आसां होना
तो इसमें मुश्किल कैसी



Tuesday, 5 September 2017

अभी से बोझ दरख्तों में पड़ रहा है क्यूं

अभी से बोझ दरख्तों में पड़ रहा क्यूं है

अभी से बोझ , दरख्तों में पड़ रहा क्यूं है
अपनों को तल्राशता आदमी , तनहा--तनहा क्यूं है

बचपन क्‍यों मल्टीमीडिया के मकड़जाल में , उलझ  कर रह गया
बचपन आज , बचपन को तरस रहा क्यूं है

बुजुर्गों के सम्मान पर भी , छा रहे काले बादल
अपने ही आंगन के विशाल  दरख्त को , आदमी काटता क्यूं है

क्यों नहीं थम रहा , जिन्दगी के भागने का सफ़र
अपनी ही जिन्दगी को आदमी , जहन्नुम बना रहा क्यूं है

सड़कों पर तड़पते तन , कब तक यूं ही छोड़ते रहेंगे आस
आज का आदमी , आदमी को आदमी समझता नहीं क्यूं है 

तनहा  - तनहा जिन्दगी को कर लिया , अपनी जिन्दगी का सफ़र 
रिश्तों की आगोश में, आज का आदमी समाता नहीं क्यूं है 

सिसकती साँसें हो गयीं जिन्दगी का सिला, फिर भी 
आज का आदमी , इबादत  के गीत गुनगुनाता नहीं क्यूं है 

अभी से बोझ , दरख्तों में पड़ रहा क्यूं है
अपनों को तल्राशता आदमी , तनहा--तनहा क्यूं है

बचपन क्‍यों मल्टीमीडिया के मकड़जाल में , उलझ  कर रह गया
बचपन आज , बचपन को तरस रहा क्यूं है




भव सागर से पार उतारो

भवसागर से पार उतारो

भवसागर से पार उतारो , हे मनमोहन हे गिरधारी
है प्रभु भक्तन के रखवारे, हे प्रभु दीनन के हितकारी

'पावन कर दो मन हम सबका, हम तुम पर जाएँ बलिहारी
चरण कमल प्रभु राखो हमको, चरण कमल जाएँ बलिहारी

है कान्हा है मुरलीधर, लीजो सुधि हमरी बनवारी
चंचल मन को पावन कर दो, जीवन हो जाए फुलवारी 

कान्हा तुमको ध्याऊँ कैसे , कैसे तुम पर जाऊं मैं वारी
पुण्य करो सब कर्म हमारे, ओ जीवन नैया के खेवनहारी

तेरे दर मैं आऊँ कैसे , राह बताओ गिरधारी
गीत तेरी महिमा के , गाऊँ कैसे गिरधारी

चरण कमल्र का दे दो सहारा , कृपा करो बनवारी
'तुझको प्रभु सर्वस्व समर्पण, जीवन धन मैं जाऊं वारी

मन मंदिर में तुम्हें बसाऊँ , मन मंदिर बस जाओ गिरधारी
जीवन नैया पार लगा  दो, हे पावन परमेश्वर , तुम पर मैं बलिहारी

भवसागर से पार उतारो , हे मनमोहन हे गिरधारी
है प्रभु अक्तन के रखवारे, हे प्रभु दीनन के हितकारी

'पावन कर दो मन हम सबका, हम तुम पर जाएँ बलिहारी
चरण कमल प्रभु राखो हमको, चरण कमल जाएँ बलिहारी




तेरी तारीफ़ ए मेरे खुदा

तेरी तारीफ़ ए मेरे खुदा , करूं तो करूं कैसे

तेरी तारीफ़ ए मेरे खुदा , करूं तो करूं कैसे
'ए मेरे खुदा तुझे गुनगुनाऊं  , तो गुनगुनाऊँ कैसे

'ए मेरे मालिक, इतना बता दे मुझको
तुझको अपने दिल में, सजाऊँ तो सजाऊं  कैसे

मैं हूँ तेरा दीवाना , इतना पता है मुझको
'तुझको अपना खुदा ,बनाऊँ तो बनाऊँ कैसे

पीर दिल की तुझको ,दिखाँ तो दिखाऊँ कैसे
खुद को तेरे दर का चराग ,बनाऊँ तो बनाऊँ कैसे

मेरी आरजू है तुझको मैं , अपना खुदा कर लूं
 अपने आशियोँ मैं ,तुझको बुलाऊँ तो बुलाऊँ कैसे

मेरी आँखें तेरे दीदार को , तरसती बरबस
'तेरा दीदार मेरे मालिक , पाऊँ  तो पाऊँ कैसे

मेरी हर एक कोशिश , तुझ पर निसार मेरे मॉला
तेरी जन्नत की सैर पर , आऊँ तो आऊँ कैसे

तेरी तारीफ़ ए मेरे खुदा , करूं तो करूं कैसे
'ए मेरे खुदा तुझे गुनगुनाऊं  , तो गुनगुनाऊँ कैसे

'ए मेरे मालिक, इतना बता दे मुझको
तुझको अपने दिल में, सजाऊँ तो सजाऊं  कैसे


अपने दिल की पीर

अपने दिल की पीर

अपने दिल की पीर , ज़माने से
छुपाता रहा हूँ. छुपाता रहूँगा मैं

'बहकर आये जो नीर , अधरों तक जिनके
उन आंसुओं को चुनता रहा हूँ.. चुनता रहूँगा मैं

गरीबी के आलम में गुजारे
बरसों बरस मैंने

अपनी कलम को गरीबों की आवाज़.
बनाता रहा हूँ  बनाता रहूँगा मैं

इंसानियत से मुंह मोड़ने वालों से
पट रही ये दुनिया
मैं इंसानियत की राह पर लोगों को
लाता रहा हूँ.. लाता रहूँगा मैं

वतन परस्ती का ज़ज्बा पाले हुए हूँ
मैं अपने दिल में

लोगों के दिलों में वतन परस्ती का ज़ज्बा
जगाता रहा हूँ : जगाता रहूँगा मैं

अपने दिल की पीर , ज़माने से
'छुपाता  रहा हूँ, छुपाता रहूँगा मैं

बहकर आये जो नीर , अधरों तक जिनके
उन आंसुओं को चुनता रहा हूँ  चुनता रहूँगा मैं




भ्रम में कोई क्यूं जीता है

भ्रम में कोई जीता क्यूं   है 

भ्रम में कोई जीता क्यूं   है 
क्यूं कर कोई आंसू पीता क्यूं है 
डूबता बीच समंदर फिर भी 
भ्रम  मैं कोई क्यूं जीता है.

जीवन राह नहीं है आसां
जुर्म को पास बुलाता फिरता
अति विश्वास मैं डूबा रहता.
खुद पर है इतराता फिरता क्यूं है 

विलासिता में डूबा रहता
भौतिक  सुखपर इतराता फिरता
धर्म की राह इसे न भाती 
भ्रम में  ये जीता क्यूं  है.

पीर   पराई ये  न जाने
अपने दुःख को ही दुःख माने 
गिरते  को ये कभी न उठाये
खुद को खुद में ही उलझाये फिर क्यूं है 

भ्रम में  कोई क्यूं जीता है.
क्यूं कर कोई आंसू पीता है.
डूबता बीच समंदर फिर मी
भ्रम  के आसमां  में उड़ता क्यूं है 






वक्त के दरिया में



वक्त के दरिया में 

वक्त के दरिया में , कोशिशों के समंदर में डूबकर देखो 
चंद प्रयासों को न करो , अपनी मंजिल का हमसफ़र 

जीत जाओगे तुम , मंजिल पर होंगे कदम तेरे 
प्रयासों के समंदर में , एक बार उतारकर देखो 

प्रयासों का एक खूबसूरत कारवाँ सजाकर देखो 
मंजिल तेरे क़दमों का निशाँ होगी 

तेरे प्रयास तेरी ख़ुशी का चरम होंगे 
देंगे तुझे , आसमां पाने का एहसास 

किसी की वीरान जिन्दगी का , एक कोना रोशन कर देखो 
तेरी जिन्दगी को नसीब होगा , जीने का मकसद 

किसी के बुझे अधरों पर , मुस्कान बिखेरकर देखो 
तुझे खुदा के करीब होने का होगा एहसास 

किसी गुमसुम सी नन्ही परी के चहरे पर , मुस्कान बिखेरकर देखो 
तेरी जिन्दगी फूलों के गुलशन की मानिंद होगी रोशन 

किसी की बेबस निगाहों का ख़्वाब बनकर देखो 
तेरे ख़्वाबों पर होगा , उस खुदा का करम 

किसी की सिसकती साँसों में , सपनों की खुशबू का समंदर उतारकर देखो 
"अंजुम" तेरी जिन्दगी को नसीब होगा , जिन्दगी होने का सबब