ग़ज़ल
उसने उसे अपनी दिल की , पीर को दिखाया होगा.
उसने उसे अपने , सीने से लगाया होगा
उसकी पीर ने उसके दिल में ,दर्द जगाया होगा
'सिसकती सांसं के संग ,वो मुस्कुराया होगा
इस बेदर्द जमाने मैं ,फुर्सत है किसे
खुदा ने उसे, उससे मिलाया होगा
आज कोई कहाँ ,किसी के लिए मरता हैं
उस खुदा ने उसे , बन्दा बनाया होगा
किसे कहें हम अपना , विसाले यार यहाँ
खुदा खुद बन्दा बनकर , यहाँ आया होगा
जला देते हैं जो औरों का घर , बताएं क्या
कितनी शिद्दत से उसने अपना , आशियाँ सजाया होगा
उसकी बेबाक मुस्कराहट बनी , मुहब्बत का सबब
किसी ख़ास वक़्त में खुदा ने .उसे बनाया होगा
व कया जाने दर्द , खुदा के बन्दों का.
खुदा ने उनको भी कभी , उनसे मिलाया होगा.
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