Friday 4 November 2016

क्या हुआ गर - ग़ज़ल


क्या हुआ गर - ग़ज़ल

क्या हुआ गर प्यार को मैरे , तुमने ठुकरा दिया
और भी हैं आसमां . आशियों सजाने के लिए

क्या हुआ गर तुमने, मुझको पराया कर दिया
और भी हैं हमसफ़र, रोशन जिन्दगी के लिए

नसीब जो होता प्यार, दो पल के लिए ही सही
गुज़ार देते सारी उम्र , तेरे एक दीदार के लिए

चलने का नाम जिन्दगी, रुकने का नाम माँत है
क्यों न कर जियें हम, बिन तेरे सहारे को लिए

गर जो कर लेते तुम, प्यार को मेरे कुबूल
दो पत्न ही काफी होते, जिन्दगी संवारने के लिए

यूं ही नहीं समझा हमने, तुमको मुहब्बत का खुदा
जी रहे हैं आज भी हम. तेरे पहलू में दो पल बसर के लिए

खुदा ने तुझकों ,किसी और की जागीर किया
पलकें बिछाए बैठे हैं हम , एक तेरे दीदार के लिए

जिन्दगी यूं ही क्यूं कर .ख़त्म हो जाए
क्यूं न जियें हम ताउम ,उस खुदा के बन्दों के लिए

क्या हुआ गर प्यार को मैरे , तुमने ठुकरा दिया
और भी हैं आसमां . आशियों सजाने के लिए

क्या हुआ गर तुमने, मुझको पराया कर दिया
और भी हैं हमसफ़र, रोशन जिन्दगी के लिए







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