Wednesday 2 November 2016

वो नज़रिया बदलने के लिए , रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं
' कभी किसी की आँखों का नीर हो सिसकते हैं, तो कभी किसी का प्रेम बन
मन ही मन मुस्काते हैं

कभी किसी के आँगन की माटी हो महकते हैं , तो कभी दो वक़्त की रोटी को
'तरसते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं
कभी दिल में टीस लिए जीते हैं, तो कभी अभिलाषाओं के समंदर मैं उत्तरते
हैं

कभी मदोन्मत्त हो प्रेयसी को लुभाते हैं, तो कभी कल्पनाओं के समंदर में
खो जाते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं
कभी किसी दुर्बल का बल हो जाते हैं , तो कभी किसी सुरसरि की पावनता
हो जाते हैं

कभी प्रकृति के ऑगन में खुशबू बिखेरते हैं, तो कभी किसी सलिला ली पावन
कल - कल का आनंद उठाते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं

नह नज़ारिया बदलने के लिए , रोज़ मीलो चलते है
' कभी किसी बचपन की मासूमियत भरी चंचलता हो जाते हैं , तो कभी किसी संत की
'जय - जयकार हो जाते हैं

कभी पर्वत से बहते झरने की मंद - मंद मुस्कान हो जाते हैं, तो कभी पक्षियों के
झुण्ड का मधुर कलरव हो जाते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए , रोज़ मीलों चलते हैं
कभी किसी अलौकिक शक्ति का साक्षात्कार हो जाते हैं, तो कभी किसी संत का
आडंबर हो सामने आते हैं

कभी किसी निर्भया का चीरहरण हो जाते हैं, तो कभी अर्जुन का गांडीव हो जाते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं
कभी कृष्ण की पावन भूमि हो जाते हैं, तो कभी मोक्ष का द्वार “हरिद्वार” हो जाते
हैं

कभी कुहरे में लिपटी सुबह हो जाते हैं, तो कभी किसी देवालय की पावनता हो जाते
हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं
' कभी किसी की आँखों का नीर हो सिसकते हैं, तो कभी किसी का प्रेम बन
मन ही मन मुस्काते हैं

कभी किसी के आँगन की माटी हो महकते हैं , तो कभी दो वक़्त की रोटी को
'तरसते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं



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