किसी ने सोचा न था
फूल खिलने से पहले ही मुरझा जायेंगे
किसी ने सोचा न था
स्थिति इतनी भयावह हो जायेगी
किसी ने सोचा न था
'रिश्ते यूं बिखर जायेंगे
किसी ने सोचा न था
फूलों से खुशबू खो जायेगी
किसी ने सोचा न था.
आदमियत दुनिया से गुम हो जायेगी
किसी ने सोचा न था
इंसानियत यूं शर्मिन्दा हो जायेगी
किसी ने सोचा न था.
इबादत , इंतकाम का सबब हो जायेगी
किसी ने सोचा न था
धर्म पर होंगे कटाक्ष
किसी ने सोचा न था.
धर्म ग्रंथों के अस्तित्व पर उठेंगे सवाल
किसी ने सोचा न था.
चीरहरण ,समाज की कुरूपता का आईना हो जायेंगे
किसी ने सोचा न था
अतिथि , अतिथि न होकर बोझ होने लगेगे
किसी ने सोचा न था
सलिला अपनी पावनता खो देगी
किसी ने सोचा न था
“काम “मनोरंजन का विषय हो जाएगा.
किसी ने सोचा न था
युवा पीढ़ी संस्कारों को तिलांजलि दे देगी
किसी ने सोचा न था
बुजुर्ग धरती पर बोझ से महसूस होने लगेंगे
किसी ने सोचा न था
समाज के अर्धनग्न चरित्र “सेलेब्रिटी “ बन विचरण करेंगे
किसी ने सौचा न था
संस्कृति, संस्कार लुप्तप्रायः से लगने लगेंगे
किसी ने सौचा न था
"विश्वास “ अपने अस्तित्व की टोह मैं सारा - मारा फिरेगा
किसी ने सोचा न था
हंस चुग रहा दाना और कौंवा मोती खा रहा होगा
किसी ने सोचा न था
गीतों से आत्मा खो जायेगी
किसी ने सोचा न था
परमात्मा के अस्तित्व पर प्रश्न उठ खड़े होंगे
किसी ने सोचा न था
सुसमभ्य संत समाज पर भी अविश्वास की काली परत छा जायेगी
किसी ने सोचा न था
_अधर्म की काली छाया , धर्म का रूप ले लेगी
किसी ने सोचा न था
चूत तो कपूत होंगे ही, माता भी कुमाता हो जायेगी.
किसी ने सोचा न था.
देवालय उपेक्षा का शिकार हो जायेंगे.
किसी ने सोचा न था
आइम्बर , धर्म बन उभरेगा
किसी ने सोचा न था
आतंक की काली छाया मानव जीवन पर ख़तरा बन उमड़ेगी.
किसी ने सोचा न था
मोबाइल, इन्टरनेट मानव को यूं दिग्भ्रमित करेंगे
किसी ने सोचा न था.
भूकंप, सुनामी और बवंडर यूं मनु विनाश का कारण बनेंगे
किसी ने सोचा न था
प्रकृति हमसे यूं रूठ जायेगी
किसी ने सोचा न था
अभिनन्दन मार्ग को छोड़ मानव , अवनति की और अग्रसर हो जाएगा.
किसी ने सोचा न था
इंसानियत की राह अविश्वास की भैंट चढ़ जायेगी
किसी ने सोचा न था
संकल्प , आदर्श, संयम जैसे विषय बीती बातें हो जायेंगे
किसी ने सोचा न था
ये दुनिया दुश्चरित्रों का समंदर हो जायेगी
किसी ने सोचा न था
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