Wednesday, 27 January 2016

किसकी बातों पर करें विश्वास

किसकी बातों पर करें विश्वास

किसकी बातों पर करें विश्वास , किसकी बातों पर नहीं
जुल्म के  सौंदागरों से , पट गयी दुनिया

किसको कहूं अपना, किसको कहूँ बेगाना
रिश्तों को , तार --तार कर रहीं दुनिया

कया कहें , क्यो हो रहा ये सब
खुद को क्‍यों , बदनाम कर रही दुनिया

इंसानियत के रखवालों का , दिखता नहीं नामों निशाँ 
दो पल  के मज़े के लिए , चीरहरण कर रही दुनिया

उसने खुद को बचाकर रखा बरसों
अचानक ये क्या  हुआ; उजड़ गयी उसकी दुनिया

मर्यादा लाघते , ये समाज के आवारा चरित्र
न जाने क्यों संस्कारों से, मटक रही दुनिया

क्या बताएँ क्यों हो रहा संस्कृति: संस्करों से पलायन
आधुनिकता की अंधी दौइ की , भेंट  चढ़ रही दुनिया

किताबों से अब रहा नाता नहीं यार
whatsapp, फेसबुक, twitter  में उलझ कर रह गयी दुनिया

खुदा की इबादत के लिए , वक्त बचा ही कहाँ यारों
मल्टीमीडिया  की दुनिया में , उलझ कर रह गयी दुनिया

चंद प्रयासों को सफलता का , समझ रहे वो हमसफ़र
शोर्टकट  की बलि चढ़ रही , आज की युवा दुनिया

कोई तो इनको बताये, किस दिशा में बढ़ रहे हैं हम
यूं ही चलता रहा तो, नासूर होकर रहे जायेगी इनकी दुनिया




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