किसकी बातों पर करें विश्वास
किसकी बातों पर करें विश्वास , किसकी बातों पर नहीं
जुल्म के सौंदागरों से , पट गयी दुनिया
किसको कहूं अपना, किसको कहूँ बेगाना
रिश्तों को , तार --तार कर रहीं दुनिया
कया कहें , क्यो हो रहा ये सब
खुद को क्यों , बदनाम कर रही दुनिया
इंसानियत के रखवालों का , दिखता नहीं नामों निशाँ
दो पल के मज़े के लिए , चीरहरण कर रही दुनिया
उसने खुद को बचाकर रखा बरसों
अचानक ये क्या हुआ; उजड़ गयी उसकी दुनिया
मर्यादा लाघते , ये समाज के आवारा चरित्र
न जाने क्यों संस्कारों से, मटक रही दुनिया
क्या बताएँ क्यों हो रहा संस्कृति: संस्करों से पलायन
आधुनिकता की अंधी दौइ की , भेंट चढ़ रही दुनिया
किताबों से अब रहा नाता नहीं यार
whatsapp, फेसबुक, twitter में उलझ कर रह गयी दुनिया
खुदा की इबादत के लिए , वक्त बचा ही कहाँ यारों
मल्टीमीडिया की दुनिया में , उलझ कर रह गयी दुनिया
चंद प्रयासों को सफलता का , समझ रहे वो हमसफ़र
शोर्टकट की बलि चढ़ रही , आज की युवा दुनिया
कोई तो इनको बताये, किस दिशा में बढ़ रहे हैं हम
यूं ही चलता रहा तो, नासूर होकर रहे जायेगी इनकी दुनिया
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