Thursday 28 January 2016

चंद क़दमों का सहारा ही बहुत है जीने के लिए

चंद क़दमों का सहारा ही बहुत है जीने के लिए

चंद क़दमों का सहारा ही ,बहुत है जीने के लिए
कौन जीता है यहाँ ,पल--पल मरने के लिए.

दो पल के लिए हमसफ़र ,जो हो जाए कोई
कौन जीता है यहाँ ,ताउम्र बसर करने के लिए

एक चाँद ही काफी है , खूबसूरती बयाँ करने के लिए.
कौन जीता है , पल--पल सिसकने के लिए.

उसने सोचा था , एक चाँद उसे भी होगा नसीब
यूं ही नहीं इश्क को खुदा समझा उसने जीने के लिए.

जीते तो रहे हैं सभी, किसी न किसी वजह को लिए.
जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, बुझदिल तो है मरने के लिए

इश्के - खुदा को कर लिया उसने अपनी जिन्दगी का सबब
मुश्किलों के दौर में वक़्त बचा ही कहाँ है खुदा के लिए.

रोटी, कपड़ा और मकान की आरज़ू लिए जी रहे हैं सब
वरना किसको पड़ी है , जिए दो पहर के लिये.

जिन्दगी की भागदौड़ से मिले दो वक़्त का आराम
कौन नहीं है चाहता , दो वक़्त इबादत के लिए.

मुसीबतों के दौर ने किया, उन्हें मजबूर पीने के लिए
वरना चाहता कौन है पीना दो घूँट , बेवक्त मरने के लिए

लिख दिया है उसने अपना नाम , इतिहास के पत्नों में
वरना किसको पड़ी है , जिये जानवरों सा मरने के लिए.

चंद क़दमों का सहारा ही ,बहुत है जीने के लिए
कौन जीता है यहाँ ,पल--पल मरने के लिए.

दो पल के लिए हमसफ़र ,जो हो जाए कोई
कौन जीता है यहाँ ,ताउम्र बसर करने के लिए



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