Saturday, 12 November 2016

जिन्दगी तुझ पर भरोसा किया हमने

जिन्दगी तुझ पर भरोसा किया हमने

जिन्दगी तुझ पर , भरोसा किया हमने
जाने ये क्या , सिला दिया तूने

सोचते थे , तुझे मना लेंगे
जाने क्यों , ठुकरा दिया तूने

कोशिश थी , अमानत कर लेंगे तुझे
जाने क्यों , पराया कर दिया तूने 

अरमां थे जिन्दगी , तुझको करेंगे रोशन
जाने क्यों , बिसरा दिया तूने

तुझे पलकों पर सजाने की थी , ख्वाहिश मेरी
जाने क्यों खुद को , सजा दी तूने

आगोश में उस ख़ुदा की , बैठने के थे अरमां मेरे
जाने क्‍यों खुद से खुद को , जुदा किया तूने

आब -ए - आईना ( दर्पण की चमक) की तरह , रोशन करना चाहता था तुझे
जाने क्‍यों आबरू , खाक में मिला दी तूने

तेरे आशियाने को जन्नत सा , देखने की थी ख्वाहिश मेरी
जाने क्यों अन्धकार से , रिश्ता बना लिया तूने

जिन्दगी तुझ पर , भरोसा किया हमने
जाने ये क्या , सिला दिया तूने

सोचते थे , तुझे मना लेंगे
जाने क्यों , ठुकरा दिया तूने





अपनी नगरी हमें बुलाओ कान्हा - भजन


अपनी नगरी हमें बुलाओ कान्हा

अपनी नगरी , हमें बुलाओ कान्हा
हमरे संग , रास रचाओ कान्हा

हमें , अहं से बचाओ कान्हा
हमें भी ,अपना बनाओ कान्हा

अपने चरणों में , बिठा लो कान्हा
अपना शागिर्द , बना लो कान्हा

चरण कमल में , रख लो कान्हा
कीर्ति की राह , दिखाओ कान्हा

विनती मेरी , सुत लो कान्हा
सलिला सा पावन , कर दो कान्हा

मन मंदिर में , बस जाओ कान्हा
विलक्षण भाग्य , जगाओ कान्हा

तुझ पर , मैं बलि जाऊं कान्हा
निर्दोष चरित्र , बनाओ कान्हा

मुझ पर , दया दिखाओ कान्हा
तुझ पर बलि--बलि , जाऊं कान्हा

परिचय मेरा मुझसे , कराओ कान्हा
अपना सेवक , बनाओ कान्हा

अपयश से हमें , बचाओ कान्हा
पावन हमें , बताओ कान्हां

अपनी नगरी , हमें बुलाओ कान्हा
हमरे संग , रास रचाओ कान्हा

हमें , अहं से बचाओ कान्हा
हमें भी ,अपना बनाओ कान्हा







Tuesday, 8 November 2016

जिन्दगी यूं ही क्यों . गुमनामी के निशाँ हो जाए

जिन्दगी यूं ही क्यों , गुमनामी के निशाँ हो जाए

जिन्दगी यूं ही क्यों ,गुमनामी के निशों हो जाये
क्यों न हम मन में ,आशा और उल्लास के दीपक जलाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों ,तिरस्कार के समंदर में खो जाए
क्यों न हम स्वाभिमान को ,अपने उत्कर्ष का हमसफ़र बनाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों ,अंतहीन सफ़र की मुसाफिर हो जाए
क्यों न हम अपने प्रयासों में ,समर्पण की रौशनी जगाएं

जिन्दगी यूं ही क्‍यों ,अर्थहीन प्यास का समंदर हो जाए
क्यों न हम जिन्दगी में ,शालीनता को अपना हमसफ़र बनाएं

जिन्दगी यूं ही क्‍यों ,गुमसुम सी अँधेर में खो जाए
क्यों न हम आशा का दीपक जला ,इसे रोशन बनाएं

जिन्दगी यूं हे क्‍यों संसार की ,माया-मोह में खोकर रह जाए
क्यों न हम इबादत को अपनी ,मुक्ति का ज़रिया बनाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों ,खुदगर्जी के समंदर में खो जाए
क्यों न हम रिश्तों की ,एक खुशनुमा महफ़िल सजाएं

जिन्दगी यूं ही क्‍यों ,निराशा के बवंडर में खो जाए.
क्यों न हम सशा के बादलों से सजा ,एक आसमां बनायें

जिन्दगी यूं ही क्यों ,गुमनामी के निशों हो जाये
क्यों न हम मन में ,आशा और उल्लास के दीपक जलाएं

जिन्दगी यूं ही क्यों ,तिरस्कार के समंदर में खो जाए
क्यों न हम स्वाभिमान को ,अपने उत्कर्ष का हमसफ़र बनाएं



खुद पर न संदेह करो , खुद पर विश्वास करो


खुद पर संदेह न करो , खुद पर विश्वास करो

खुद पर संदेह न करो, खुद पर विश्वास करो
जीत त्रोगे आसमां तुम, खुद पर एतबार करो

खुद को आशा के पालने मैं सुलाओ , खुद को न निराश करो.
खुद का सम्मान करो , खुद का कल्याण करो

खुद को बुझदिल न समझो, खुद को साहस से पौषित करो
खुद पर दया न करो, खुद को स्वाभिमान से रोशन करो

खुद की अच्छाइयों पर घमंड न करो, खुद की बुराइयों को दूर करो
खुद को पावन करो, खुद का उद्धार करो

खुद को सम्पूर्ण न समझो , कुछ और प्रयास करो.
खुद कुछ प्रयास करो, दूसरों को न निराश करो

खुद से प्रेम करो, खुद की जय - जयकार करो
खुद को संवम में रखो, खुद का आभार करो

यूं न ग़ामगीन रहो, खुद को आज़ाद करो
बढ़ चलो मंजिल की और, खुद का विस्तार करो

जिन्दगी इतनी छोटी भी नहीं, इस पर एतबार करो
जियो तो रौशनी बनकर, खुद का उत्कर्ष करो.

खुद पर संदेह न करो, खुद पर विश्वास करो
जीत त्रोगे आसमां तुम, खुद पर एतबार करो

खुद को आशा के पालने मैं सुलाओ , खुद को न निराश करो.
खुद का सम्मान करो , खुद का कल्याण करो







Monday, 7 November 2016

रिश्तों की अपनी दुनिया, रिश्तों की अपनी मंजिल

रिश्तों की अपनी दुनिया , रिश्तों की अपनी मंजिल

रिश्तों की अपनी दुनिया , रिश्तों की अपनी मंजिल
रिश्तों की अपनों रें , रिश्तों के अपने दिन

रिश्तों से संवरते रिश्ते, रिश्तों से पनपता धर्म
रिश्तों की पावनता में समर्पण , रिश्तों का अपना अभिनन्दन

रिश्तों से पनपती कुलीनता, रिश्तों से पुष्पित होती मर्यादा
रिश्तों की महिमा अनुपम, रिश्तों की महिमा पावन

रिश्तों का अपना उपवन, रिश्तों का अपना मरुस्थल
रिश्तों की अपनी गैली , रिश्तों की अपनी खुशबू

रिश्तों की अपनी व्याकुलता, रिश्तों की अपनी सहजता
रिश्तों की अपनी अभिलाषा, रिश्तों की अपनी सीमा

रिश्तों की अपनी विशालता, रिश्तों का अपना आसमां
रिश्तों की अपनी मासूमियत, रिश्तों की अपनी शालीनता

रिश्तों का अपना सुख, रिश्तों का अपना विश्वास
रिश्तों की अपनी धुंध, रिश्तों की अपनी पावन पवन

रिश्तों की अपनी शंकर, रिश्तों का अपना संगीत
रिश्तों की अपनी चंचलता , रिश्तों का अपना बचपन




तेरी महिमा के गुण , गाऊँ तो गाऊँ कैसे - भजन

तेरी महिमा के गुण , गाऊँ तो गाऊँ कैसे

तेरी महिमा के गुण , गाऊँ तो गाऊँ कैसे
तेरी शरण में कान्हा , आऊँ तो आऊँ कैसे

खुद को तुझ पर , लुटाऊँ तो लुटाऊँ कैसे
तेरी महिमा के गुण , गाऊँ तो गाऊँ कैसे

पुष्प अर्पित करें या , मैं करूँ फल अर्पित
कैसे करूँ वंदना तेरी, मैं तुझको रिझाऊँ तो रिझाऊँ कैसे

मुझको तो ये भी , पता नहीं कान्हा
ओ मुरली वाले , मैं तुझको मनाऊँ तो मनाऊँ कैसे

मेरी गलतियों को ,क्षमा करना कान्हा
तुझकों अपने घर मैं , बुलाऊँ तो बुलाऊँ कैसे

तूने जो कर लिया ,मुझे सेवक अपना
तेरे चरणों को ,पखारूँ तो पखारूँ कैसे

तेरी महिमा के गुण , गाऊँ तो गाऊँ कैसे
हर पल मेरा ,तेरी सेवा में गुजरे

तेरी चरणों की धूलि , माथे पर लगाऊँ कैसे
तेरी महिमा के गुण , गाऊँ तो गाऊँ कैसे

खुद को तुझ पर , लुटाऊँ तो लुटाऊँ कैसे
तेरी महिमा के गुण , गाऊँ तो गाऊँ कैसे


Sunday, 6 November 2016

उस चिंगारी को दिल में धधकने दो

उस चिंगारी को दिल में धधकने दो

उस चिंगारी को , दिल में धधकने दो
जो रूढ़िवादी विचारों पर , कुठाराघात कर सके

उन सद्विचारों को , दिल में पलने दो
जो कुंठित विचारों से पोषित , चरित्रों का विनाश के सके

उन गलियारों में , अँधेरा पसर जाने दो
जो सुसंस्कृत समाज की , स्थापना में बाधा बने

वर्तमान स्त्री नज़रिए को , बदल जाने दो
जो उसे यातनाओं के दलदल से , निज़ात दिला सके

मिथक और सच्चाई का भेद , खुल जाने दो
जो आँखों पर पड़ी अन्धविश्वास की पट्टी को , उतार कर फेंक सके

अपने सपनों को आसमान की , ऊंचाईयों तक जाने दो
जो तुम्हें , तुम्हारे सपनों को , पूरा करने हेतु प्रेरित कर सके

दो चार सुनामी , और आने दो
जो हमें पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति , प्रतिबद्ध कर सके

धर्म पर पड़ी अधर्म की पड़ी , पट्टी को उतर जाने दो
जो मनुष्य को स्वयं के कल्याण हित , प्रयास करने को विवश कर सके

भोग और आत्म कल्याण का , भेद खुल जाने दो
जो मानव को उसके स्वयं के , उद्धार हेतु दिशा दे सके

धैर्य का बाँध , टूट जाने दो
जो हमें हमारी परेशानियों से , मुक्त कर नवजीवन दे सके

दुर्जनों को सूली पर , चढ़ जाने दो
जो एक स्वस्थ समाज की स्थापना की , परम्परा का आधार
बन सकें

दिलों में संस्कारों की ज्योति , प्रज्जवलित हो जाने दो
जो आने वाली पीढ़ी को सवास्थ समाज की परम्परा को , आगे
ले जाने में उनकी मदद कर सके

आतंक के ठेकेदारों को “सर्जिकल स्ट्राइक” का , शिकार हो जाने दो
जो आतंक का पर्याय हो रहे चरित्रों को , एक सबक दे सके

सामाजिक बुराइयों के प्रतीक , रावण को जल जाने दो
जो सुसंस्कृत एवं संस्कारित , समाज व राष्ट्र की स्थापना का उद्देश्य हो सके

दिलों मैं राष्ट्रीय एकता की भावना का , बिगुल बज जाने दो
जो सीमा के दुश्मनों के लिए सीख हो सके , उनकी दुर्भावनाओं पर अंकुश लगा सके

मानव जगत को संस्कारों व संस्कृति की , धरोहर हो जाने दो
जो इस ज़मीं पर जन्नत का एहसास करा सके . दिलों में
मुहब्बत का आगाज़ कर सके

समय को परिवर्तित , हो जाने दो
जो हमें कलियुग के दलदल से , बाहर ला सके

उस चिंगारी को , दिल में धधकने दो
जो रूढ़िवादी विचारों पर , कुठाराघात कर सके

उन सद्विचारों को , दिल में पलने दो
जो कुंठित विचारों से पोषित , चरित्रों का विनाश के सके










मेरी सरकार मैं तेरी शरण में आया हूँ


मेरी सरकार मैं तेरी शरण में आया हूँ

मेरी सरकार मैं , तेरी शरण मैं आया हूँ
अपना शागिर्द बना , या छोड़ दे मुझको 

मेरी सरकार मैं , तेरी शरण में आया हूँ
सजा दे मुझको, या तराश दे मुझको

मेरी सरकार मैं , तेरी शरण में आया हूँ
खिला दे फूल इबादत के , या भुला दे मुझको

अपनी पनाह में रख , या बिसार दे मुझको
अपना बच्चा समझ या ;दर से निकाल दे मुझको

मेरी सरकार मैं , तेरी शरण में आया हूँ
.तैरी छवि , तैरे सौन्दर्य ने , प्रभावित किया मुझे

मैं तेरे चरणों की , धूलि लेने आया हूँ
मेरी सरकार मैं , तेरी शरण में आया हूँ

'चॉँद तारों की , आरज़ू नहीं मुझको.
तेरी शरण तेरे दीदार की , आरज़ू मुझको

मेरी सरकार मैं , तेरी शरण में आया हूँ.
अपना शागिर्द बना , या छोड़ दे मुझको 

मेरी सरकार मैं , तेरी शरण में आया हूँ
सजा दे मुझको, या तराश दे मुझको


Friday, 4 November 2016

रूप दो जय दो, यश दो मुझको


रूप दो , जय दो, यश दो मुझको

रूप दो जय दो ,यश दो मुझको
'परमपिता ,चरण रज दो मुझको

अभिनन्दन , उत्कर्ष की राह दो मुझको
'परमपिता ! अपनी छाया में रखो मुझको

संयम, संकल्प से सजा दो मुझको
'परमपिता , अपना सेवक बना लो मुझको

सुसंगति , सम्मान की राह दो मुझको
'परमपिता ! अपना अनुचर करो मुझको

खुला आसमां , भक्ति रस दो मुझको
'परमपिता , अपनी धरोहर कर लो मुझको

आशा और अनुराग से सजा दो मुझको
'परमपिता ! अपनी संतान बना लो मुझको

मेघों सा, पुष्पों सा पावन कर दो मुझको
'परमपिता, अपने चरणों मैं रख लो मुझको

रूप दो जय दो, यश दो मुझको
'परमपिता !अपना सहचर कर लो मुझको

रूप दो जय दो ,यश दो मुझको
'परमपिता ,चरण रज दो मुझको

अभिनन्दन , उत्कर्ष की राह दो मुझको
'परमपिता ! अपनी छाया में रखो मुझको



क्या हुआ गर - ग़ज़ल


क्या हुआ गर - ग़ज़ल

क्या हुआ गर प्यार को मैरे , तुमने ठुकरा दिया
और भी हैं आसमां . आशियों सजाने के लिए

क्या हुआ गर तुमने, मुझको पराया कर दिया
और भी हैं हमसफ़र, रोशन जिन्दगी के लिए

नसीब जो होता प्यार, दो पल के लिए ही सही
गुज़ार देते सारी उम्र , तेरे एक दीदार के लिए

चलने का नाम जिन्दगी, रुकने का नाम माँत है
क्यों न कर जियें हम, बिन तेरे सहारे को लिए

गर जो कर लेते तुम, प्यार को मेरे कुबूल
दो पत्न ही काफी होते, जिन्दगी संवारने के लिए

यूं ही नहीं समझा हमने, तुमको मुहब्बत का खुदा
जी रहे हैं आज भी हम. तेरे पहलू में दो पल बसर के लिए

खुदा ने तुझकों ,किसी और की जागीर किया
पलकें बिछाए बैठे हैं हम , एक तेरे दीदार के लिए

जिन्दगी यूं ही क्यूं कर .ख़त्म हो जाए
क्यूं न जियें हम ताउम ,उस खुदा के बन्दों के लिए

क्या हुआ गर प्यार को मैरे , तुमने ठुकरा दिया
और भी हैं आसमां . आशियों सजाने के लिए

क्या हुआ गर तुमने, मुझको पराया कर दिया
और भी हैं हमसफ़र, रोशन जिन्दगी के लिए







Thursday, 3 November 2016

किसी ने सोचा न था


किसी ने सोचा न था

फूल खिलने से पहले ही मुरझा जायेंगे
किसी ने सोचा न था

स्थिति इतनी भयावह हो जायेगी
किसी ने सोचा न था

'रिश्ते यूं बिखर जायेंगे
किसी ने सोचा न था

फूलों से खुशबू खो जायेगी
किसी ने सोचा न था.

आदमियत दुनिया से गुम हो जायेगी
किसी ने सोचा न था

इंसानियत यूं शर्मिन्दा हो जायेगी
किसी ने सोचा न था.

इबादत , इंतकाम का सबब हो जायेगी
किसी ने सोचा न था

धर्म पर होंगे कटाक्ष
किसी ने सोचा न था.

धर्म ग्रंथों के अस्तित्व पर उठेंगे सवाल
किसी ने सोचा न था.

चीरहरण ,समाज की कुरूपता का आईना हो जायेंगे
किसी ने सोचा न था

अतिथि ,  अतिथि न होकर बोझ होने लगेगे
किसी ने सोचा न था

सलिला अपनी पावनता खो देगी
किसी ने सोचा न था

“काम “मनोरंजन का विषय हो जाएगा.
किसी ने सोचा न था

युवा पीढ़ी संस्कारों को तिलांजलि दे देगी
किसी ने सोचा न था

बुजुर्ग धरती पर बोझ से महसूस होने लगेंगे
किसी ने सोचा न था

समाज के अर्धनग्न चरित्र “सेलेब्रिटी “ बन विचरण करेंगे
किसी ने सौचा न था 

संस्कृति, संस्कार लुप्तप्रायः से लगने लगेंगे
किसी ने सौचा न था 

"विश्वास “ अपने अस्तित्व की टोह मैं सारा - मारा फिरेगा
किसी ने सोचा न था

हंस चुग रहा दाना और कौंवा मोती खा रहा होगा
किसी ने सोचा न था

गीतों से आत्मा खो जायेगी
किसी ने सोचा न था

परमात्मा के अस्तित्व पर प्रश्न उठ खड़े होंगे
किसी ने सोचा न था

सुसमभ्य संत समाज पर भी अविश्वास की काली परत छा जायेगी
किसी ने सोचा न था

_अधर्म की काली छाया , धर्म का रूप ले लेगी

किसी ने सोचा न था

चूत तो कपूत होंगे ही, माता भी कुमाता हो जायेगी.
किसी ने सोचा न था.

देवालय उपेक्षा का शिकार हो जायेंगे.
किसी ने सोचा न था

आइम्बर , धर्म बन उभरेगा
किसी ने सोचा न था

आतंक की काली छाया मानव जीवन पर ख़तरा बन उमड़ेगी.
किसी ने सोचा न था

मोबाइल, इन्टरनेट मानव को यूं दिग्भ्रमित करेंगे
किसी ने सोचा न था.

भूकंप, सुनामी और बवंडर यूं मनु विनाश का कारण बनेंगे
किसी ने सोचा न था

प्रकृति हमसे यूं रूठ जायेगी
किसी ने सोचा न था

अभिनन्दन मार्ग को छोड़ मानव , अवनति की और अग्रसर हो जाएगा.
किसी ने सोचा न था

इंसानियत की राह अविश्वास की भैंट चढ़ जायेगी
किसी ने सोचा न था

संकल्प , आदर्श, संयम जैसे विषय बीती बातें हो जायेंगे
किसी ने सोचा न था

ये दुनिया दुश्चरित्रों का समंदर हो जायेगी
किसी ने सोचा न था



Wednesday, 2 November 2016

वो नज़रिया बदलने के लिए , रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं
' कभी किसी की आँखों का नीर हो सिसकते हैं, तो कभी किसी का प्रेम बन
मन ही मन मुस्काते हैं

कभी किसी के आँगन की माटी हो महकते हैं , तो कभी दो वक़्त की रोटी को
'तरसते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं
कभी दिल में टीस लिए जीते हैं, तो कभी अभिलाषाओं के समंदर मैं उत्तरते
हैं

कभी मदोन्मत्त हो प्रेयसी को लुभाते हैं, तो कभी कल्पनाओं के समंदर में
खो जाते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं
कभी किसी दुर्बल का बल हो जाते हैं , तो कभी किसी सुरसरि की पावनता
हो जाते हैं

कभी प्रकृति के ऑगन में खुशबू बिखेरते हैं, तो कभी किसी सलिला ली पावन
कल - कल का आनंद उठाते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं

नह नज़ारिया बदलने के लिए , रोज़ मीलो चलते है
' कभी किसी बचपन की मासूमियत भरी चंचलता हो जाते हैं , तो कभी किसी संत की
'जय - जयकार हो जाते हैं

कभी पर्वत से बहते झरने की मंद - मंद मुस्कान हो जाते हैं, तो कभी पक्षियों के
झुण्ड का मधुर कलरव हो जाते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए , रोज़ मीलों चलते हैं
कभी किसी अलौकिक शक्ति का साक्षात्कार हो जाते हैं, तो कभी किसी संत का
आडंबर हो सामने आते हैं

कभी किसी निर्भया का चीरहरण हो जाते हैं, तो कभी अर्जुन का गांडीव हो जाते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं
कभी कृष्ण की पावन भूमि हो जाते हैं, तो कभी मोक्ष का द्वार “हरिद्वार” हो जाते
हैं

कभी कुहरे में लिपटी सुबह हो जाते हैं, तो कभी किसी देवालय की पावनता हो जाते
हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए रोज़ मीलों चलते हैं

वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं
' कभी किसी की आँखों का नीर हो सिसकते हैं, तो कभी किसी का प्रेम बन
मन ही मन मुस्काते हैं

कभी किसी के आँगन की माटी हो महकते हैं , तो कभी दो वक़्त की रोटी को
'तरसते हैं
वो नज़रिया बदलने के लिए ,रोज़ मीलों चलते हैं



ग़ज़ल - उसने अपनी दिल की पीर को ,उसको दिखाया होगा

ग़ज़ल

उसने उसे अपनी दिल की , पीर को दिखाया होगा.
उसने उसे अपने , सीने से लगाया होगा

उसकी पीर ने उसके दिल में ,दर्द जगाया होगा
'सिसकती सांसं के संग ,वो मुस्कुराया होगा

इस बेदर्द जमाने मैं ,फुर्सत है किसे
खुदा ने उसे, उससे मिलाया होगा

आज कोई कहाँ ,किसी के लिए मरता हैं
उस खुदा ने उसे , बन्दा बनाया होगा

किसे कहें हम अपना , विसाले यार यहाँ
खुदा खुद बन्दा बनकर , यहाँ आया होगा

जला देते हैं जो औरों का घर , बताएं क्‍या
कितनी शिद्दत से उसने अपना , आशियाँ सजाया होगा

उसकी बेबाक मुस्कराहट बनी , मुहब्बत का सबब
किसी ख़ास वक़्त में खुदा ने .उसे बनाया होगा

व कया जाने दर्द , खुदा के बन्दों का.
खुदा ने उनको भी कभी , उनसे मिलाया होगा.