Friday 20 May 2022

गैरों की क्या बात करें

 गैरों की क्या बात करें

अपने ही हुए पराये बैठे हैं
कल तक जो बातें करते थे
आज मुंह फुलाए बैठे हैं

हमें देख कभी जो मुस्काते थे
आज मुंह घुमाए बैठे हैं
पीड़ा में जिनकी हम सहभागी थे
वो आज हमारी पीड़ा बन बैठे हैं

जिनके गम में हम साये थे
हमारे ग़मों का समंदर बन बैठे हैं
जिनके सुख – दुःख के हम भागी थे
वे ही दुःख का अम्बर बन बैठे हैं

जिनके लिए हम कल – कल करती सलिला थे
वे ही हमारे जीवन में दलदल का सागर सजा बैठे हैं
उनकी पीर को हम अपनी पीर समझते हैं
हमारी खुशियों पर नज़र गड़ाकर बैठे हैं

किसको समझाएं , कैसे समझाएं
अपने ही पराये हुए बैठे हैं
ऊपर मन से हमें वो अपना कहते
भीतर ही भीतर घात लगाए बैठे हैं

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