Wednesday, 28 November 2018

सचमुच की अब कोई सहर दे या मेरे खुदा


सचमुच की अब कोई सहर दे या मेरे खुदा

सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा
अपने बन्दों को अपना अज़ीज़ कर ए मेरे खुदा
इनके दिलों में इबादत का जज्बा रोशन कर ए मेरे खुदा
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा

इबादते  - इल्म से रोशन हो ये ज़मीं
तेरे करम का अब कोई सिला हो मेरे खुदा
मेरी इबादत गीत गीत बनकर ग़ज़ल बनकर निखरे
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा

अपने बन्दों के दिलों में पैदा कर ज़ज्बा  - ए  - इंसानियत
इनके दिलों में रिश्तों के लिए मुहब्बत पैदा कर ए मेरे खुदा
रोतों के ये हँसा सकें , गिरतों को संभाल सकें
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा

पाकीज़गी इनके दिलों में , इबादत बन हो रोशन
हर एक शख्स तेरा नूर बन रोशन हो ए मेरे खुदा
इस ज़मीं को जन्नत के एहसास से कर रोशन
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा



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