Saturday, 3 November 2018

दो गज ज़मीं की आस में


दो गज ज़मीं  की आस में

दो गज ज़मीं की आस में, जिए जा रहे हैं हम
खुद को खुदा का बंदा , किये जा रहे हैं हम

जन्नत हो नसीब हमें, ये इबादत ,किये जा रहे हैं हम
इंसानियत को मकसदे  - जिन्दगी, किये जा रहे हैं हम

अपनी कोशिशों को खुदा की अमानत , किये जा रहे हैं हम
अंदाज़ मुहब्बत के बयाँ, किये जा रहे हैं हम

खुद को खुदा की राह में निसार , किये जा रहे हैं हम
खुद को खुदा की राह में आदिल , किये जा रहे हैं हम

मुहब्बत की आस में खुदा से उम्मीद , किये जा रहे हैं हम
आहिस्ताआहिस्ता ही सही , उस खुदा के मुरीद हुए जा रहे हैं हम

इबादत को अपनी जिन्दगी का मकसद , किये जा रहे हैं हम
करम है उस खुदा का , जिये जा रहे हैं हम

खुद को उस खुदा की निगाह में, काबिल किये जा रहे हैं हम
कायदे को उस खुदा के, मकसदेजिन्दगी किये जा रहे हैं हम

खिदमत में उस खुदा के बन्दों की, निसार खुद को किये जा रहे हैं हम
चार कन्धों की आस में, जिए जा रहे हैं हम

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