उनकी मुस्कान पर हमारा हक़ नहीं हुआ तो उनकी खता कैसी
उनकी
मुस्कान पर हमारा हक़ नहीं हुआ तो उनकी खता कैसी
उनकी बाहों
का सहारा हमें नसीब नहीं हुआ तो उनकी खता कैसी
उनकी आरज़ू
में हम बरसों चैन से सो न पाए तो उनकी खता कैसी
उनकी चाहत
को हमने कर लिया खुदा की इबादत तो इसमें उनकी खता कैसी
उनकी नशीली
आँखों में ढूंढते रहे हम खुदा का दीदार तो इसमें उनकी खता कैसी
उनकी
मासूमियत भरी मुस्कान को हम मुहब्बत समझ बैठे तो उनकी खता कैसी
उनकी चाहत
में हमने अपनों से कर लिया किनारा तो उनकी खता कैसी
उनके दीदार
को हमने खुदा का दीदार समझ लिया तो उनकी खता कैसी
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