तारों को चाँद से मुहब्बत हो गयी
तारों को चंद से मुहब्बत हो गयी तो इसमें बुरा क्या है
“अनिल” को कलम से मुहब्बत हो गयी तो इसमें बुरा क्या है
चिंतन और विचारों की अपनी सीमाएं नहीं होती
चंद असरार “अनिल “ ने भी लिख दिए तो इसमें बुरा क्या है
कवितायेँ भी अभावों के दौर से रहीं गुजर
“अनिल” ने दो चार कवितायें लिख दीं तो इसमें बुरा क्या
है
“वो” समझते हैं कवितायें लिखना है उनकी जागीर
मेरी लेखनी ने गर आगाज़ किया तो इसमें बुरा क्या है
पाकर खुश हो रहे हैं कुछ श्रोता मुझको अपने बीच
उनके दिलों में गर “अनिल” जगह बना रहा है तो इसमें बुरा
क्या है
उस खुदा का करम, उसकी नज़र हो सब पर
“अनिल” गर उस खुदा का आशिक हो गया तो इसमें बुरा क्या
है
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