Wednesday, 28 November 2018

चंद बूँद छलक जाने से


चंद बूँद छलक जाने से

चंद बूँद छलक जाने से सागर नहीं मरा करता है
एक सपने के बिखर जाने जीवन नहीं रुका करता है

चंद तूफां के आ जाने से सागर नहीं डिगा करता है
चंद खुशियों के बिखर जाने जीवन नहीं रुका करता है

चंद पुष्पों के बिखर जाने से उपवन नहीं मरा करता है
चंद कदम बहक जाने से जीवन नहीं रुका करता है

चंद पत्तों के बिखर जाने से वृक्ष नहीं मरा करता है
चंद तूफां के आ जाने से सकल्प नहीं मरा करता है

चंद शिलाओं के गिर जाने से हिमालय नहीं डिगा करता है
चंद रिश्तों के बिखर जाने से जीवन नहीं रुका करता है

चंद लहरों के बिखर जाने से तूफां कहाँ रुका करता है
चंद अश्रुओं के छलक जाने से जीवन कहाँ रुका करता है

चंद गीतों के मर जाने से लेखन कहाँ रुका करता है
चंद साँसों के बिखर जाने से जीवन कहाँ रुका करता है

चंद पुष्प मुरझा जाने से गुलशन कहाँ मरा करता है
चंद ग़मों के आ जाने से जीवन कहाँ रुका करता है

चंद बूँद छलक जाने से सागर नहीं मरा करता है
एक सपने के बिखर जाने जीवन नहीं रुका करता है

चंद तूफां के आ जाने से सागर नहीं डिगा करता है
चंद खुशियों के बिखर जाने जीवन नहीं रुका करता है

सचमुच की अब कोई सहर दे या मेरे खुदा


सचमुच की अब कोई सहर दे या मेरे खुदा

सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा
अपने बन्दों को अपना अज़ीज़ कर ए मेरे खुदा
इनके दिलों में इबादत का जज्बा रोशन कर ए मेरे खुदा
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा

इबादते  - इल्म से रोशन हो ये ज़मीं
तेरे करम का अब कोई सिला हो मेरे खुदा
मेरी इबादत गीत गीत बनकर ग़ज़ल बनकर निखरे
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा

अपने बन्दों के दिलों में पैदा कर ज़ज्बा  - ए  - इंसानियत
इनके दिलों में रिश्तों के लिए मुहब्बत पैदा कर ए मेरे खुदा
रोतों के ये हँसा सकें , गिरतों को संभाल सकें
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा

पाकीज़गी इनके दिलों में , इबादत बन हो रोशन
हर एक शख्स तेरा नूर बन रोशन हो ए मेरे खुदा
इस ज़मीं को जन्नत के एहसास से कर रोशन
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा



क्यों कर तुम्हारे खून में


क्यों कर तुम्हारे खून में

क्यों कर तुम्हारे खून में उबाल नहीं आता
क्यों कर तुम्हारी आत्मा तुम्हें नहीं लजाती

क्यों कर स्वयं के हित जी रहे तुम
ऐसा क्या है कि जागते नहीं हो तुम

या फिर ऐसा है कि जागना नहीं चाहते तुम
क्यों नहीं करते बहिष्कार इन कुसियों के लोभियों का

क्या चाटुकारिता ही है इस जीवन का मर्म
राष्ट्रहित क्या तुम्हारा नहीं है कोई धर्म

क्यों नहीं जागता स्वाभिमान तुम्हारा
क्यों समझते हो तुम खुद को नाकारा

क्यों नहीं करते तुम राष्ट्रप्रेम की लौ रोशन
क्यों नहीं जागता राष्ट्रधर्म तुम्हारा

क्यों नहीं करते तुम स्वयं को पुष्पित
क्या राष्ट्र के हित नहीं कोई धर्म तुम्हारा

क्यों कर तुम्हारे खून में उबाल नहीं आता
क्यों कर तुम्हारी आत्मा तुम्हें नहीं लजाती

क्यों कर स्वयं के हित जी रहे तुम
ऐसा क्या है कि जागते नहीं हो तुम



नारी


नारी  


आज की आधुनिक नारी
कतरा   - दर कतरा जिन्दगी को संजोती नारी

अपने आँचल में हौसलों का एह्सास लिये
उम्मीदों का एक समंदर संजोती नारी

जीवन मरू में प्यार की सरिता बहाती
तिनका  - तिनका कर अपना आसमां रोशन करती नारी

स्वयं के विश्वास के दम हौले  - हौले बढ़ती
खुशनुमा जिन्दगी का एक कैनवास सजाती नारी

बिखर जाती जो खुशियाँ बनकर
खुद को खुद का हमदम बनाती नारी

उम्मीदों की सतरंगी किरणों से स्वयं को रोशन करती
ज़माने को बदलने का एहसास जगाती नारी

इनकी सूरत पर लिखी ज़माने की कहानी
समाज के सांस्कृतिक चेहरे का दर्पण होती नारी

एक उन्मुक्त गगन की चाह में जीती
जीवन के विभिन्न आयामों में स्वयं को पिरोती नारी

स्वयं पुष्पित होती , औरों को पुष्पित करती
अपनी संवेदनाओं को अपना चरित्र बनाती नारी

अपने हर एक कर्म को अपना धर्म समझती
संस्कृति और संस्कारों परचम लहराती नारी 


आज की आधुनिक नारी
कतरा   - दर कतरा जिन्दगी को संजोती नारी

अपने आँचल में हौसलों का एह्सास लिये
उम्मीदों का एक समंदर संजोती नारी


चंद क्षणिकाएं


चंद क्षणिकाएं

1
आंसुओं की भी होती है अपनी जुबां
बहते हैं तो दिल की गहराइयों तक
संवेदनाओं का एक ज्वार  - भाटा सा
स्वयं ही एहसास जगा देता है

2
एक लम्हा ख़ुशी से
लबालब जिन्दगी
खुशियों का समंदर रोशन कर
जिन्दगी को और भी हसीं बना देती है

3
समय की रेखा पर बदलती नारी
कुंठा के पिंजरे से बाहर आ
स्वयं को हौसलों और उम्मीदों से पोषित कर
बिखेरने लगी है जीवन में खुशियाँ

4
उम्मीदों की सतरंगी किरणें
हौसला ज़माने को बदल देने का
और इरादा आसमां छू लेने का
काफी है खुला आसमां पाने के लिए


मैं अपना सूरज खुद बन


मैं अपना सूरज खुद बन

मैं अपना सूरज खुद बन चमकना चाहता हूँ
अपने हौसलों को अपनी मंजिल का हमसफ़र बनाना चाहता हूँ

क्यों कर मैं दूसरों की बताई राह पर चलूँ
मैं अपनी कलम का एक रोशन आशियाँ बनाना चाहता हूँ

खुद को खो दूं कलम के कैनवास की दुनिया में
मैं खुद को असफलताओं के अभिशाप से  मुक्त कराना चाहता हूँ

ये जिन्दगी का कारवाँ है एक सफ़र, ये जानता हूँ मैं
मैं अपनी कोशिशों को अपनी मंजिल का राजदार बनाना चाहता हूँ

बचपन की वो यादें वो कभी धूप कभी छाँव
मैं उस धुप  - छाँव को अपनी यादें बनाना चाहता हूँ

क्यों कर चाँद की ओर देख ललचाऊँ मैं खुद को
मैं खुद को इस धरा का रोशन चाँद बनाना चाहता हूँ

क्यों कर किसी के सपने को कहूं अपनी जिन्दगी का सच
मैं खुद को अपने सपनों का शहंशाह बनाना चाहता हूँ

किसी को गिराने की फितरत नहीं मेरी, ऊपर उठने के लिए
मैं खुद का अपना आसमां सजाना चाहता हूँ

 मैं अपना सूरज खुद बन चमकना चाहता हूँ
अपने हौसलों को अपनी मंजिल का हमसफ़र बनाना चाहता हूँ

क्यों कर मैं दूसरों की बताई राह पर चलूँ
मैं अपनी कलम का एक रोशन आशियाँ बनाना चाहता हूँ



संवेदनाएं


संवेदनाएं

संवेदनाओं की दुनिया खोलती है एक नई कहानी
भयमुक्त हो जाती हैं हमारी प्रार्थनाएं

संवेदना एक संभावना नहीं अवसर है
जीवन को भय मुक्त पथ पर अग्रसर करने का 

धर्म और आध्यात्म इसे पुष्पित व पोषित करते
धर्म का मर्म बन जीवन को चरितार्थ करने का

जीवन की हर एक साँस संवेदनाओं पर समर्पित
अपने अहं को मानवीय संवेदनाओं पर न हावी होने दें

धर्म से परे आध्यात्मिकता की असफल तलाश क्यों
क्यों न धर्म और आध्यात्म की तार पर साध लें जीवन

हमारी मानवीय संवेदनाएं हमारे मानव होने का श्रेष्ठ परिचय
फिर मानव मन मानव तन में ही परमात्व तत्व के होने का बोध करें

क्यों न हमारी जीवन की तलाश अनवरत जारी रहे
क्यों न हम धर्म और आध्यात्म के और सत्य स्थापित करें

संवेदनाओं का एक संसार निर्मित करें जिसके चारों ओर
जीवन की सार्थकता का , संस्कारों का एक उपवन रोशन हो

संवेदनाएं मानव मन के पावन होने का द्योतक है
आध्यात्म के परचम तले आत्म संवाद का एक कारवाँ सजा लें

संवेदनाओं की दुनिया खोलती है एक नई कहानी
भयमुक्त हो जाती हैं हमारी प्रार्थनाएं

संवेदना एक संभावना नहीं अवसर है
जीवन को भय मुक्त पथ पर अग्रसर करने का 

चाहतों का एक समंदर

चाहतों का एक समंदर

चाहतों का एक समंदर रोशन कर सकूं तो अच्छा हो
मुहब्बत का एक कारवाँ सजा सकूं तो अच्छा हो

गीत पाक मुहब्बत के अपनी लेखनी का हिस्सा कर सकूं तो अच्छा हो
मुहब्बत के गीत  बनकर लबों पर साज़ सकूं तो अच्छा हो

दिल के दर्द को सीने में छुपाकर जी सकूं तो अच्छा हो
किसी की सिसकती साँसों का मरहम हो जी सकूं तो अच्छा हो

पाक दामन पाक आरज़ू को अपनी जागीर बना सकूं तो अच्छा हो
किसी की स्याह रातों में चाँद बन उजाला कर सकूं तो अच्छा हो

कागज़ और कलम का एक अजब रिश्ता कायम कर सकूं तो अच्छा हो
चंद असरार उस खुदा की तारीफ़ में लिख सकूं तो अच्छा हो

उस खुदा के करम से रोशन अपनी शख्सियत कर सकूं तो अच्छा हो
उस खुदा के दर का चराग हो रोशन हो सकूं तो अच्छा हो 

Monday, 26 November 2018

डाली से गिरकर टूटे


डाली से गिरकर टूटे

डाली से टूटकर गिरे
पत्ते से मैंने पूछा

“क्या डाली ने
और साथ देने इनकार कर दिया”

पत्ता मासूमियत भरे अंदाज़ में बोला

जब आदमी का
बुरा वक़्त आता है
अपने भी साथ छोड़ देते हैं

एक हाथ दूसरे हाथ को
पहचानने से इनकार कर देता है

बेटा  - बाप को पहचानने से
इनकार कर देता है

रिश्ते  - रिश्ते नहीं रहते
संस्कार फीके लगने लगते हैं

अतिमहत्वाकांक्षा रिश्तों पर
भारी पड़ने लगती है

फिर मैं तो एक पत्ता हूँ
मेरी औकात ही क्या है

जो मैं डाली को कोसूं
क्यों कोसूं ?
क्यों कोसूं ?
क्यों कोसूं ?

उनकी मुस्कान पर हमारा हक़ नहीं हुआ तो उनकी खता कैसी


उनकी मुस्कान पर हमारा हक़ नहीं हुआ तो उनकी खता कैसी

उनकी मुस्कान पर हमारा हक़ नहीं हुआ तो उनकी खता कैसी
उनकी बाहों का सहारा हमें नसीब नहीं हुआ तो उनकी खता कैसी

उनकी आरज़ू में हम बरसों चैन से सो न पाए तो उनकी खता कैसी
उनकी चाहत को हमने कर लिया खुदा की इबादत तो इसमें उनकी खता कैसी

उनकी नशीली आँखों में ढूंढते रहे हम खुदा का दीदार तो इसमें उनकी खता कैसी
उनकी मासूमियत भरी मुस्कान को हम मुहब्बत समझ बैठे तो उनकी खता कैसी

उनकी चाहत में हमने अपनों से कर लिया किनारा तो उनकी खता कैसी
उनके दीदार को हमने खुदा का दीदार समझ लिया तो उनकी खता कैसी


तारों को चाँद से मुहब्बत हो गयी


तारों को चाँद से मुहब्बत हो गयी

तारों को चंद से मुहब्बत हो गयी तो इसमें बुरा क्या है
“अनिल” को कलम से मुहब्बत हो गयी तो इसमें बुरा क्या है

चिंतन और विचारों की अपनी सीमाएं नहीं होती
चंद असरार “अनिल “ ने भी लिख दिए तो इसमें बुरा क्या है

कवितायेँ भी अभावों के दौर से रहीं गुजर
“अनिल” ने दो चार कवितायें लिख दीं तो इसमें बुरा क्या है

“वो” समझते हैं कवितायें लिखना है उनकी जागीर
मेरी लेखनी ने गर आगाज़ किया तो इसमें बुरा क्या है

पाकर खुश हो रहे हैं कुछ श्रोता मुझको अपने बीच
उनके दिलों में गर “अनिल” जगह बना रहा है तो इसमें बुरा क्या है

उस खुदा का करम, उसकी नज़र हो सब पर
“अनिल” गर उस खुदा का आशिक हो गया तो इसमें बुरा क्या है