Monday, 17 October 2016

कल्पनाओं के समंदर से खुद को मुक्त कर के देख - मुक्तक

१.


कल्पनाओं के समंदर से खुद को, मुक्त कर के देख 

सच के सागर मैं उतर, एक नया जहाँ बसा के देख

सुरसरि सा हो पावन, अंतर्मन जगा के देख

उत्कर्ष को तू कर ले मंजिल ,कर्म को जीवन बना के देख

२.


अहम् को  छोड़कर तू, स्वाभिमान से रिश्ता बना के देख 
 
कामनाओं मैं न फंस तू, जीवन से रिश्ता बना के देख

आवेश  में न उबल तू, संयम से रिश्ता बना के देख 

 परछाइयों के पीछे न भाग, सच के आईने से नज़रैं मिला के देख



3.


विलासिता में  न उलझ, खुद को दिलासा दे के देख 

 संतोष को कर जीवन का गहना, तूफान से खुद को बचा के देख

दयालु  है वो कृपालु, उसकी शरण में आके देख 

मुक्ति की तू कर कामना, वेदनाओं को भुला के देख







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