आवाजों की भीड़ में , संवाद की तलाश करूँ तो करूँ कैसे
आवाजों की भीड़ में, संवादों की तलाश करूँ तो करूँ कैसे
जी रहे हैं जो उपेक्षित से, उनसे जीवन की आस करूँ तो करूँ कैसे
आत्मा से जो अन्धविश्वासी हैं , उनसे धर्म स्थापना की आस करूँ तो करूँ कैसे
अहंकार व अभिमान में जी रहे हैं जो, उनसे मानवता की राह पर चलने की बात
करूँ तो करूँ कैसे
जी रहे हैं जो एकाकी सा जीवन, उनसे रिश्तों की बात करूँ तो करूँ कैसे
जिनके दिलों में हौसला नहीं, उनसे देश पर मर मिटने की बात करूँ तो करूँ कैसे
बिता दी जिन्होंने अय्याशी मैं जिन्दगी अपनी, उनसे सामाजिकता की उम्मीद
करूँ तो करूँ कैसे
चंद सिक्कों पर लुटा दी जिन्होंने जिन्दगी अपनी, उनसे देश प्रेम की आस करूँ
तो करूँ कैसे
पी रहे हैं जो वक़्त - बेवक्त , उन्हें होश में लाने की कोशिश करेंर तो करूँ कैसे
आदमियत जिनकी जिन्दगी का हिस्सा नहीं, उन्हें मैं धर्म की राह दिखाने की
कोशिश करूँ तो करूँ कैसे
अति सुन्दर कविता।
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