Monday, 22 September 2014

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है
खुशकिस्मत है कि तुझ पर उसके करम का साया है

खुशकिस्मत है तू कि तू उसकी राजा से यहाँ आया है
माँ लेगा जो तू उसकी सत्ता को , तुझ पर उसके करम का साया है

बनकर फूल तुझको इस जहां में खिलना है
इस चमन का नूर बनकर तुझे यहाँ संवारना है

राहों को आसान कर तुझे मंजिल पाना है
ये जहां तेरी कर्म राह का ठिकाना है

निर्बाध तू बढ़ता जाए इस जहां में
तुझे ही तो आदर्श की गंगा बहाना है

तुझे पीछे चलना नहीं किसी के
तुझे लोगों को अपने पीछे लाना है

कि मौसमे बहार में पतझड़ भी आता है
तुझे सावन बन पतझड़ पार जाना है

किस्सा नहीं बनना तुझको इस जहां में
खींचनी है आदर्शों की रेखा तुझको

कि कुछ तस्वीरें ऐसी तुझे बनानी हैं
जिनमे केवल जीवन ही जीवन रवानी है

कि गिरते हैं वो मुसाफिर जीवन की राह में
जिनकी आँखों का सपना मंजिलें नहीं होतीं

तू वो रचना  है उस खुदा की  इस जहां में
जिसे नए – नए आयाम स्थापित करके जाना है

कि तू वो सवार नहीं जो ज़रा सी आँधियों से डर जाए
तू तो वो शै है जिसे तूफ़ान को भी हराना है

मस्त चाल से जो तू बढ़ता जाएगा
आसमां भी तेरी कामयाबी पर शरमायेगा

चाँद सितारे देंगे दुआयें तुझको
तेरे प्रयासों से एक और चाँद धरती पर खिल जाएगा

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है
खुशकिस्मत है कि तुझ पर उसके करम का साया है


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