तेरी खातिर क्या – क्या ना सुना मैंने
तेरी खातिर क्या – क्या
ना सुना मैंने
तू है कि यूं ही रुसवा
कर रही मुझको
ख्वाहिश है की तेरी
बाहों का सहारा मिलता
तू है कि यूं ही बदनाम
कर रही मुझको
तेरी अदाओं के जलवों से
रूबरू हूँ मैं
तू है कि यूं ही अनजान
समझ रही मुझको
गुमसुम सी जिन्दगी का
मालिक हो गया हूँ मैं
तू है कि यूं ही अजनबी
समझ रही मुझको
तेरी ख़ुशी है मेरी
जिन्दगी का सबब
तू है कि यूं ही परेशान
कर रही मुझको
छोड़ दूंगा ये दुनिया
तेरी राह में सनम
तू है कि यूं ही गुमराह
कर रही मुझको
गुस्ताखी ना हो मुझसे
ये चाहता हूँ मैं
तू है कि यूं ही बरगला
रही मुझको
ग़मों से नाता ना हो
तेरा कभी भी ए जानम
तू है कि यूं ही जख्म
दे रही मुझको
No comments:
Post a Comment