Monday 22 September 2014

खिलेंगे फूल राहों में

खिलेंगे फूल राहों में

खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

कौन कहता है सुबह होगी नहीं
हौसलों को तू अपने
आसमां की उड़ान पर लेकर चल 
रुकना नहीं है तुझको बीच राह में
मंजिल को अपने जिगर में बसा के चल 
खुशबू से महकेगा आँचल
किसी को अपना बना के चल 
किस्से जहां में यूं ही एहसास नहीं देते
किसी की राह के कांटे चुरा के चल 
बेफिक्री में तू यूं ना जी
किसी के गम अपने जिगर में बसा के चल 
तेरा नसीब बुलंदी पाए
दो फूल इंसानियत के खिला के चल

मुझे लोग खुदा का नूर कहें
दो वक़्त की नमाज़ अता कर के चल

खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल




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