Monday, 22 September 2014

कागज़ की नाव सी न हो जिन्दगी तेरी

कागज़ की नाव सी, न हो जिन्दगी तेरी

कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी
मांझी की पतवार सी , हो जिन्दगी तेरी

बंज़र ज़मीं सी ,न हो जिन्दगी तेरी
फूलों की खुशबू की मानिंद ,हो जिन्दगी तेरी

ज़मीं पर यूं ही ,न रहें कदम तेरे
आसमां को छूती ,जिन्दगी हो तेरी

विचारों पर तेरे पाश्चात्य का ,प्रभाव न पड़े
संस्कृति , संस्कारों से, पल्लवित हो जिन्दगी तेरी

किस्सा न हो जाएँ ,सभी प्रयास तेरे
आदर्श मार्ग निर्मित ,हो जिन्दगी तेरी

यूं ही न बीत जाए, जिन्दगी तेरी
दूर सीमा पर देश की ढाल, हो जिन्दगी तेरी

यूं ही सिसक- सिसक कर ,न बीते जिन्दगी तेरी
औरों के ग़मों को ढोती ,हो जिन्दगी तेरी

कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी
मांझी की पतवार सी ,न हो जिन्दगी तेरी


खिलेंगे फूल राहों में

खिलेंगे फूल राहों में

खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

कौन कहता है सुबह होगी नहीं
हौसलों को तू अपने
आसमां की उड़ान पर लेकर चल 
रुकना नहीं है तुझको बीच राह में
मंजिल को अपने जिगर में बसा के चल 
खुशबू से महकेगा आँचल
किसी को अपना बना के चल 
किस्से जहां में यूं ही एहसास नहीं देते
किसी की राह के कांटे चुरा के चल 
बेफिक्री में तू यूं ना जी
किसी के गम अपने जिगर में बसा के चल 
तेरा नसीब बुलंदी पाए
दो फूल इंसानियत के खिला के चल

मुझे लोग खुदा का नूर कहें
दो वक़्त की नमाज़ अता कर के चल

खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल




खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है
खुशकिस्मत है कि तुझ पर उसके करम का साया है

खुशकिस्मत है तू कि तू उसकी राजा से यहाँ आया है
माँ लेगा जो तू उसकी सत्ता को , तुझ पर उसके करम का साया है

बनकर फूल तुझको इस जहां में खिलना है
इस चमन का नूर बनकर तुझे यहाँ संवारना है

राहों को आसान कर तुझे मंजिल पाना है
ये जहां तेरी कर्म राह का ठिकाना है

निर्बाध तू बढ़ता जाए इस जहां में
तुझे ही तो आदर्श की गंगा बहाना है

तुझे पीछे चलना नहीं किसी के
तुझे लोगों को अपने पीछे लाना है

कि मौसमे बहार में पतझड़ भी आता है
तुझे सावन बन पतझड़ पार जाना है

किस्सा नहीं बनना तुझको इस जहां में
खींचनी है आदर्शों की रेखा तुझको

कि कुछ तस्वीरें ऐसी तुझे बनानी हैं
जिनमे केवल जीवन ही जीवन रवानी है

कि गिरते हैं वो मुसाफिर जीवन की राह में
जिनकी आँखों का सपना मंजिलें नहीं होतीं

तू वो रचना  है उस खुदा की  इस जहां में
जिसे नए – नए आयाम स्थापित करके जाना है

कि तू वो सवार नहीं जो ज़रा सी आँधियों से डर जाए
तू तो वो शै है जिसे तूफ़ान को भी हराना है

मस्त चाल से जो तू बढ़ता जाएगा
आसमां भी तेरी कामयाबी पर शरमायेगा

चाँद सितारे देंगे दुआयें तुझको
तेरे प्रयासों से एक और चाँद धरती पर खिल जाएगा

खुशकिस्मत है कि तू उस परमात्मा की कृति है
खुशकिस्मत है कि तुझ पर उसके करम का साया है