Sunday, 22 December 2013

वक़्त बेवक्त जिन्दगी


वक़्त बेवक्त जिन्दगी


वक़्त बेवक्त जिन्दगी के
मालिक हो गए हैं हम

खिसकती , सरकती , सिसकती जिन्दगी के
मालिक हो गये हैं हम

ध्यान से हमारा नाता नहीं है
धन की लालसा से बांध गए हैं हम

संस्कृति के पालक नहीं रहे हम
आधुनिकता के बवंडर में खो गए हैं हम

संस्कारों की बेल के फूल न होकर
कुविचारों की शरण हो गए हैं हम

योग की लालसा रही नहीं हमको
पब और जिम की शरण हो गए हैं हम

दोस्ती पर विश्वास रहा नहीं हमको
अकेलेपन के शिकार हो गए हैं हम

सत्संग की शरण न होकर
टी वी मोबाइल के पीछे भाग रहे हैं हम

मोक्ष का विचार तो था मन में
हर पल मर मरकर जी रहे हैं हम                        
वक़्त बेवक्त जिन्दगी के
मालिक हो गए हैं हम


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