वक़्त बेवक्त
जिन्दगी
वक़्त बेवक्त जिन्दगी के
मालिक हो गए हैं हम
खिसकती , सरकती , सिसकती जिन्दगी के
मालिक हो गये हैं हम
ध्यान से हमारा नाता नहीं है
धन की लालसा से बांध गए हैं हम
संस्कृति के पालक नहीं रहे हम
आधुनिकता के बवंडर में खो गए हैं हम
संस्कारों की बेल के फूल न होकर
कुविचारों की शरण हो गए हैं हम
योग की लालसा रही नहीं हमको
पब और जिम की शरण हो गए हैं हम
दोस्ती पर विश्वास रहा नहीं हमको
अकेलेपन के शिकार हो गए हैं हम
सत्संग की शरण न होकर
टी वी मोबाइल के पीछे भाग रहे हैं हम
मोक्ष का विचार तो था मन में
हर पल मर मरकर जी रहे हैं हम
वक़्त बेवक्त जिन्दगी के
मालिक हो गए हैं हम
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