Friday, 20 May 2022

गैरों की क्या बात करें

 गैरों की क्या बात करें

अपने ही हुए पराये बैठे हैं
कल तक जो बातें करते थे
आज मुंह फुलाए बैठे हैं

हमें देख कभी जो मुस्काते थे
आज मुंह घुमाए बैठे हैं
पीड़ा में जिनकी हम सहभागी थे
वो आज हमारी पीड़ा बन बैठे हैं

जिनके गम में हम साये थे
हमारे ग़मों का समंदर बन बैठे हैं
जिनके सुख – दुःख के हम भागी थे
वे ही दुःख का अम्बर बन बैठे हैं

जिनके लिए हम कल – कल करती सलिला थे
वे ही हमारे जीवन में दलदल का सागर सजा बैठे हैं
उनकी पीर को हम अपनी पीर समझते हैं
हमारी खुशियों पर नज़र गड़ाकर बैठे हैं

किसको समझाएं , कैसे समझाएं
अपने ही पराये हुए बैठे हैं
ऊपर मन से हमें वो अपना कहते
भीतर ही भीतर घात लगाए बैठे हैं

खेतों की मेड़ , खेतों का जीवन

 खेतों की मेड़ , खेतों का जीवन

पेड़ों की उपस्थिति , मानव का जीवन
संस्कारों की माला , समाज का जीवन
नवजात की मुस्कान , माँ का जीवन

रिश्तों की मर्यादा , स्वस्थ समाज का दर्पण
गीतों की माला, सुरों का दर्पण
संवेदनाओं का समंदर , इंसानियत का दर्पण
पीड़ाओं का दौर, सुनहरे भविष्य का दर्पण

सलिला का कल – कल कर बहना , जीवों का जीवन
पेड़ों पर घोंसले , पक्षियों का जीवन
शुद्ध पवन की बयार , मानव का जीवन
पुष्पों की पावन खुशबू , भंवरों का जीवन

धर्म ग्रंथों से पोषित जीवन , संस्कृति का दर्पण
सदाचार से पुष्पित जीवन, संस्कारों का दर्पण
जीवन की मीठी यादें , सुनहरे पलों का दर्पण
संबंधों में पावनता , स्वस्थ रिश्तों का दर्पण

खेतों की मेड़ , खेतों का जीवन
पेड़ों की उपस्थिति , मानव का जीवन
संस्कारों की माला , समाज का जीवन
नवजात की मुस्कान , माँ का जीवन

मुक्तक

मुक्तक

जब किसी को देख , तेरी आँखें नम होने लगें
जब किसी की व्यथा पर , तेरा दिल घबराने लगे
जब किसी के गम , तुझे भीतर तक सताने लगें
तब समझना , तुम्हारे ह्रदय में परमात्मा का निवास है |

मुक्तक

 मुक्तक

जब किसी के आंसू , तुझे आंसुओं में डुबोने लगें
जब किसी की गरीबी, तुझे सोचने पर मजबूर करने लगे
जब किसी की ख़ुशी में तुझे, अपनी ख़ुशी नज़र आने लगे
तब समझना , तुम्हारा ह्रदय दया के सागर से परिपूर्ण है |

मुक्तक

 मुक्तक

जब तेरे ह्रदय में , किसी व्यथा पर दया भाव जागने लगे
जब किसी का दर्द , तुझे अपना दर्द बन सताने लगे
जब किसी की ख़ुशी में तुम्हें ख़ुशी रास आने लगे
तब समझना , तुम करुणा के सागर हो गए हो |

मुक्तक

 मुक्तक

जब तेरे दर्द में कोई दूसरा शरीक होने लगे
जब तेरे गम को कोई दूसरा , अपना गम कहने लगे
जब तेरी व्यथा पर कोई दूसरा आंसू बहाने लगे
तब समझना कि परमात्मा की तुम पर असीम कृपा है |

मुक्तक

 मुक्तक

जब उजाड़ उपवन में भी तुम्हें पुष्पों की कतार नज़र आने लगे
जब अभाव के दौर में भी तुम्हें सुख का एहसास होने लगे
जब किसी के दुःख में तुम्हें अपना सुख नागवार गुजरने लगे
तब समझना तुम्हारा ह्रदय उस परमात्मा की असीम कृपा का पात्र हो गया है |

मुक्तक

 मुक्तक

जब तेरी कोशिशें दूसरों की ख़ुशी का पर्याय होने लगें
जब तेरे प्रयास दूसरों के ग़मों में विराम लगाने लगें
जब तेरी कोशिशें किसी के सूने जीवन में खुशियाँ लाने लगें
तब समझना कि तुम सद्चरित्रता को प्राप्त हो गए हो |

यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए

 यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए

कुछ तुम हमारे , कुछ हम तुम्हारे खैरख्वाह हो जाएँ
यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए |

चंद रातें तुम करो, चंद रातें हम करें रोशन
यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए |

चंद पल एक दूसरे की आगोश में , जिन्दगी की खुशनुमा याद हो जाएँ
यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए |

चंद कदम मैं चलूँ , चंद कदम तुम चलो , मंजिल नसीब हो जाए
यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए |

चंद मुस्कान तुम बिखेरो, चंद मुस्कान हम , जिन्दगी खुशियों का समंदर हो जाए
यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए |

कुछ तुम मुझे मनाओ, कुछ मैं तुमको , जिन्दगी खुशियों का अम्बार हो जाए
यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए |

कुछ तुम हमारे , कुछ हम तुम्हारे खैरख्वाह हो जाएँ
यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए |

चंद रातें तुम करो, चंद रातें हम करें रोशन
यूं ही चलते – चलते जिन्दगी की शाम हो जाए |

चलो ईद मनाएं मिलकर , होली के रंग सजाएं मिलकर

 चलो ईद मनाएं मिलकर , होली के रंग सजाएं मिलकर

चलो ईद मनाएं मिलकर , होली के रंग सजाएं मिलकर
पीर दिलों की मिटाकर , दीपावली के दीये सजाएं मिलकर |

क्यूं कर हो जाएँ , हम कुटिल , अधर्मी राजनीति के शिकार
आओ इस वतन को , खूबसूरत आशियाँ बनाएं मिलकर |

चलो मनाएं क्रिसमस , प्रकाश पर्व मिलकर
धर्म के ठेकेदारों को आओ , सच का आइना दिखाएँ मिलकर |

वो करते हैं धर्म की राजनीति , एक अदद कुर्सी की खातिर
आओ चलो इस दुश्चारित्रों को कुर्सी से गिराएं मिलकर |

चलो ओणम , पोंगल , बिहू , लोहड़ी मनाएं मिलकर
संस्कृति और संस्कारों का एक कारवाँ रोशन करें मिलकर |

क्यूं कर इंसानियत शर्मशार हो रही पल – पल
चलो इंसानियत का ज़ज्बा , हर एक शख्स में जगाएं मिलकर |

मनाएं सभी त्यौहार , सभी धर्मों के एक साथ मिलकर
उत्सवों , त्योहारों का एक खूबसूरत कारवाँ सजाएं मिलकर |

क्यूं कर हमारी एकता और अखंडता पर हो कुटिल राजनीति की नज़र
चालू राजनीतिज्ञों को एकता का पाठ पढ़ाएं मिलकर |

चलो ईद मनाएं मिलकर , होली के रंग सजाएं मिलकर
पीर दिलों की मिटाकर , दीपावली के दीये सजाएं मिलकर |

क्यूं कर हो जाएँ , हम कुटिल , अधर्मी राजनीति के शिकार
आओ इस वतन को , खूबसूरत आशियाँ बनाएं मिलकर |