नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ
नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ आनंदमयी चेतना हूँ
मैं मात्र शरीर नहीं हूँ, मोक्ष का आधार हूँ
मैं करुणा और प्रेम का समंदर हूँ
मैं संस्कृति और संस्कारों का विस्तार हूँ
मुझसे ही रोशन होता है मुहब्बत का समंदर
मैं ही वात्सल्य और प्रेम का विस्तार हूँ
मेरे वजूद से ही , इस दुनिया का वजूद है
मैं ही नवजीवन की ओर अग्रसर करती हूँ
मैं ही जीवन हूँ , जीवन का आधार हूँ
मैं जब अलंकृत होती, तब समाज का विस्तार हूँ
मुझसे ही प्रेम का आगाज है , जीवन का विस्तार है
समंदर की लहरों में , हौसलों की पतवार हूँ
बचपन को पोषित करती है जो, मैं वह करुणामयी अवतार हूँ
पापियों का जो संहार करे , मैं वो काली का अवतार हूँ
नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ, मैं जगत अस्तित्व का आधार हूँ
मुझसे पोषित होता है धर्म, मैं धर्म का विस्तार हूँ
नारी हूँ मैं , देह नहीं हूँ आनंदमयी चेतना हूँ
मैं मात्र शरीर नहीं हूँ, मोक्ष का आधार हूँ
मैं करुणा और प्रेम का समंदर हूँ
मैं संस्कृति और संस्कारों का विस्तार हूँ
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