Monday, 24 May 2021

कोरोना की अजब मार है

 कोरोना की अजब मार है 


कोरोना की अजब मार है 

हर सांस हुई बेजार है 


सूझती नहीं राह किसी को 

कैसी अजब कुदरत की मार है 


बुजुर्ग तो बुजुर्ग 

अब युवाओं पर भी इसकी मार है 


अजब पीड़ा का दौर ये 

लाशों की भरमार है 


दो गज जमीन का अभाव है 

अजब कोरोना की मार है 


तड़पती साँसों का 

समंदर हो गयी ये धरा 


पेड़ों की शाखाएं ढो रहीं 

 जीवित आत्माओं का बोझ 


इन जीवित आत्माओं को अपने 

मोक्ष का इंतज़ार है 


झूठ का पुलिंदा होती राजनीति की भी 

जनता पर अजब मार है 


गली - चौराहों पर तड़पती 

जिंदगियों का अंबार है 


लुटेरों का अजब बोलबाला है 

नकली दवाइयों ने भी छीना जिन्दगी का निवाला है 


नेता करते एक दूसरे पर वार 

जनता की जिन्दगी के साथ ये कैसा छलावा है 


कोरोना की अजब मार है 

हर सांस हुई बेजार है 


सूझती नहीं राह किसी को 

कैसी अजब कुदरत की मार है 


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