शिक्षक
शिक्षक को मर्यादा की सीमाओं में न बांधो
उसके भी दिल में पत्ते हैं सपने |
उसे ही यूं कर्तव्यपरायणता का सिंबल न
बनाओ
उसके भी दिल में आरजू है बहुत |
उसे बन्धनों में यूं न जकड़ो
उसके भी अपने कुछ सामाजिक दायित्व हैं |
क्यों उसे रोकते हो अपने मन की करने से
उसकी भी अपनी उड़ान है
उसे एक कमरे के दायरे में न समेटो |
उसके भी अपने आसमान हैं
गलती पर उसे माफ़ी नहीं है क्यों |
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