मेरे देश मेरा गर्व हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम
मेरा सपना, मेरा आसमान हो तुम |
मेरे नयनों से बहते नीर का ,मर्म हो तुम
सभी धर्मों का .विस्तार हुए तुम |
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |
आर्यभट्ट , चाणक्य का चरित्र हुए तुम
सम्राट अशोक तो कभी .विक्रमादित्य हुए तुम |
शून्य का इतिहास बनकर ,विश्व में छाये
कभी बुद्ध तो कभी ,महावीर हुए तुम |
खिलाये फूल .विश्व शान्ति के जिसने
कभी सोने की चिड़िया , कभी पावन गंगा हो तुम |
उपदेश जिसके दुनिया का ,संस्कार हो गए
कभी नानक, तो कभी कृष्ण की पावन भूमि हुए तुम |
कभी तुम ताज बन निखरे, कभी कुतुबमीनार हुए तुम
कभी सम्राट अशोक तो कभी अकबर का ,ख़वाब हुए तुम |
कभी दुर्गा तो कभी राम का ,अवतार हुए तुम
कभी तुम हिन्द हुए तो कभी हिन्दुस्तान हुए तुम |
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम
कभी अधर्म पर धर्म की ,जीत बन संवरे |
धर्मयुद्ध का क्षेत्र “कुरुक्षेत्र “ हुए तुम
मेरा देश ,मेरा गर्व हो तुम |
तीर्थ स्थलों का संगम हो तुम
कृष्ण, कबीर , नानक , राम की पुण्यभूमि हुए तुम |
विश्व में अहिंसा रुपी विचार की ,गूँज हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |
सभी धर्मों को अपने आँचल में ,समेटे हो तुम
मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरद्वारा हो तुम |
शबद , अजान, प्रार्थना तो कहीं ,मंत्रोच्चार हो तुम
मेरे देश मेरा गर्व हो तुम |
कहीं नर्मदा तो कहीं कालिंदी का ,मधुर संगीत हो तुम
कहीं पर्वतों से अचल, तो कहीं हिमालय का शुरूर हो तुम |
पीरों की तो कहीं संतों की ,पुण्य धरा हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |
कभी पंचतंत्र तो कभी , कबीर , तुलसी, सूर के दोहे हुए तुम
कभी लक्ष्मीबाई तो कभी ,दुर्गावती हो तुम |
कभी कर्ण का धर्म तो कहीं विक्रमादित्य का ,सत्य हुए तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |
कभी सत्य साईं बन निखरे तो कहीं .शिर्डी साईं हुए तुम
कभी सत्य का परचम तो कभी धर्म का ,आगाज़ हो तुम |
कभी कर्म की महिमा तो कभी ,भक्ति रस हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम
कभी दुर्वासा का क्रोध तो कभी वाल्मीकि की सहदयता हुए
तुम |
कभी पृथ्वीराज चौहान तो कभी ,महारणा प्रताप हुए तुम
क्षमा जो दुश्मन को भी करे ,वो सद्विचार हुए तुम |
गाँधी बन जो ,विश्व में छाया
सत्य और अहिंसा का .प्रचार हुए तुम
भिन्न - भिन्न संस्कृतियों का ,समंदर हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |
कभी विवेकानंद तो कभी ,श्रीकृष्ण परमहंस हो तुम
मेरा कल और ,मेरा आज हुए तुम
कभी मिसाइल मैन तो कभी अर्थशास्त्र का ,नोबेल पुरस्कार हुए
तुम |
कभी तुम विश्व का आधार , कभी संस्कार हुए तुम
कभी योगा का विस्तार , कभी संतों की वाणी का आगाज़ हुए
तुम |
कभी संगीत तो कभी शास्त्रों का आधार हुए तुम
कभी गीता तो कभी ,रामायण की पुकार हुए तुम |
कभी खिलते तुम उपवन से , कभी इबादत का विस्तार हुए तुम
मेरे देश मेरा गर्व हो तुम मेरे देश मेरा गर्व हो तुम |
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम
मेरा सपना, मेरा आसमान हो तुम |
मेरे नयनों से बहते नीर का ,मर्म हो तुम
सभी धर्मों का .विस्तार हुए तुम ||