Sunday 10 April 2016

चला था वह


चला था वह

चला था  
कंधे पर
बन्दूक धर वह
 
सीमा को पार कर
लोगों के
लहू की प्यास लिए
आतंक का परचम लहराने
सीमा पर लगी बाड़
और
जवानों की आँखों में
धूल झोंककर

वह भारत भूमि पर
पैर पड़ते ही
ख़ुशी से झूम उठा

जंगल, नदियों को पार कर
मीलों चलता,
स्वयं को बचाता
भूख – प्यास से
परेशान

पीने को पानी की
एक बूँद भी नहीं बची थी
उसके पास

याद हो आये
उसे अपनी अम्मी और अब्बू

वो छोटा भाई
और
  छोटी बहन

जो भाईजान – भाईजान कह
नाक में दम
किये रहती थी

स्वयं को जीवित रखना
अब उसकी प्राथमिकता हो गई
बन्दूक, हथियार
को कहीं छुपा

वह पहुंचा
एक गाँव में

दरवाज़े पर
दस्तक दी
भाई !
दो रोटी और एक गिलास पानी
मिलेगा क्या

एक महिला ने दरवाज़ा खोला

और कहा
क्यों नहीं भाई जान !

अन्दर आइये

मकान के भीतर
वह महिला ,
उसके बूढ़े
सास – ससुर
एक प्यारी सी बच्ची

बुजुर्गवार ने पूछा
क्या हुआ बरखुरदार
रास्ता भटक गए क्या ?

वह अपने दिल की आवाज़ को
टटोलने लगा

अंतरात्मा से आवाज़ आई

“अपना मकसद न भूलना असलम”

कोई उत्तर मिलता

इसी बीच
वह नन्ही सी परी
बोल पड़ी

अम्मी कौन हैं ये ?

माँ ने कहा
बेटा ये तुम्हारे
मामू – जान हैं

खाने से भरी

थाली और
एक गिलास पानी

अब उसका जीवन बन गया

दो वक़्त की रोटी
ने   

उस घर के लोगों के
काम में उसे मशगूल कर दिया

वह खेत पर काम करता ,
ईंधन इकट्ठा करता,
जानवरों को चराता

इस तरह
वह उस घर के
एक सदस्य की तरह
जिंदगी गुजारने लगा

उस घर के हर एक सदस्य में
उसे अपनी
अम्मी, अब्बू ,
छोटी बहन
नज़र आने लगे

उस नन्ही परी
की पाकीज़ा आँखें

उन बुजुर्गवार
की लाखों आशीष

और उस
विधवा के
हाथों से बने
भोजन का बोझ

वह ज्यादा समय तक
ढो नहीं पाया

खुद को उसने
उस परिवार पर

कुर्बान करने
का निर्णय कर लिया

उस परिवार की
मुहब्बत ने
उसे जीने का
मकसद दिया

उसका मकसद
अब आतंक न होकर
दूसरों की
जिंदगी संवारना हो गया


खुद ही नहीं
दूसरों की खातिर

काश सभी असलम “ऐसे हो जायें “

काश....................................










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