Wednesday 11 March 2015

रेत के समंदर में जी रहे हैं जो

रेत के समंदर में जी रहे हैं जो

रेत के समंदर में जी रहे हैं जो
उन्हें दो बूँद पानी नसीब हो
यतीम हैं जो इस जहां में
उन्हें जिंदगानी नसीब हो

नाटक हो रही जिन्दगी जिनकी
उन्हें रवानी नसीब हो
नीरसता हो रही जिनकी जिन्दगी का गहना
उन्हें खुशिया नसीब हों

अजनबियों सी जी रहे हैं जो जिन्दगी
उन्हें जन्नत नसीब हो
आफत में गुजर रही जिन्दगी जिनकी
उन्हें आसमान नसीब हो

अजब खामोशी जिए जी रहे हैं जो
उन्हें जिन्दगी का कोलाहल नसीब हो
पालने में रो रहे हैं जो
उन्हें माँ की लोरियां नसीब हो

रेत के समंदर में जी रहे हैं जो
उन्हें दो बूँद पानी नसीब हो
यतीम हैं जो इस जहां में

उन्हें जिंदगानी नसीब हो

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