कामना ,लालसा में न फंस जाना तुम
कामना लालसा में न फंस जाना तुम
इंसानियत का एक जहां बसाना तुम
पले जहां मानवता हर एक के दिल में
ऐसे पुष्पों का एक उपवन बनाना तुम
सलिला, समीर सा पावन हो जाना तुम
सरोवर में प्रेम रुपी नीरज खिलाना तुम
सरिता सा पावन हो हर एक दिल
ऐसी पावन एक नगरी बसाना तुम
अपने – पराये में न उलझ जाना तुम
सबसे अपनापन जताना तुम
जिन्दगी होती है चार दिनों की
सभी के दिलों में एक कोना पाना तुम
मान – सम्मान के बीच न फंस जाना तुम
अपने स्वाभिमान को न लजाना तुम
यश – अपयश की चिंता न करना
कर्तव्य मार्ग पर यूं ही बढ़ते जाना तुम
कामना लालसा में न फंस जाना तुम
इंसानियत का एक जहां बसाना तुम
पले जहां मानवता हर एक के दिल में
ऐसे पुष्पों का एक उपवन बनाना तुम
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