Thursday, 12 March 2015

वक़्त रहते जो कोशिश न की तो दिल में मलाल रह जाएगा


१.

वक़्त रहते जो कोशिश न की तो दिल में मलाल रह जाएगा

बयाँ जो वफ़ा - ए  - मुहब्बत न की तो इश्क गुमनाम हो जाएगा

दिल की बात दिल में रह जाए तो नासूर हो जायेगा

किसी का दर्द जो न बांटा तो बदनाम हो जाएगा


२.

दूसरों के गम जो बांटे तो खुदा मेहरबान हो जाएगा

किसी के प्यार से वफ़ा जो की तो इश्क खुदा हो जाएगा

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया तो इंसान खुदा हो जाएगा

किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी तो खुदा तेरे करीब हो जाएगा

3.

किसी गिरते को उठाया तो इंसानियत का चेहरा मुस्कुराएगा

किससे जो देश प्रेम के तू गायेगा , तो तरा नाम अमर हो जाएगा

खिलाओगे जो फूल गुलशन में , ये गुलशन फूलों का समंदर हो जाएगा

किया जो तूने गुरु का सम्मान , तेरा व्यक्तित्व अमर हो जाएगा



4.


दिए जो पंक्षी को दाने तो मानव धर्म पल्लवित हो जाएगा 

मिली जो दो बूँद प्यासे को मानवता का अश्क गुनगुनाएगा

पुण्य जो तेरे कर्म हुए तेरा नाम अमर हो जाएगा 

इबादत को जो तूने अपना धर्म बनाया तू खुदा के करीब हो जाएगा





किताबों के पन्नों से रोशन हुए ख़्वाब - मुक्तक

१.

किताबों के पन्नों से रोशन हुए ख़्वाब
उम्मीद के बादलों से रोशन हुए जिगर 

इंतिकाम में रखा नहीं कुछ भी दोस्त
दोस्ती की  इबादत से रोशन हुए शहर 


२.

खुश्क चेहरा लिए मुस्कुरा रहा है वो

गीत इबादत के गुनगुना रहा है वो

जख्म खाए हैं उसने जमाने में

फिर भी इडानियत की राह दिखा रहा है


3.


उन्हें हमारी मुहब्बत और हमारा साथ गंवारा न हुआ 

उन्हें हमारी बेकरारी , हमारा प्यार जाहिर न हुआ 

हम चाहते रहे उन्हें बिक मन , ऐ मुहब्बत के खुदा 

हमारा प्यार , हमारा जुनूने  - ए - मुहब्बत गंवारा न हुआ



4.


अपना समझ के मैंने अज़ीज़ कर लिया उन्हें

इम्तिहां और भी हैं आजमाइश के इस दौर में

ऐसा भी कोई हो जिसे मैं अपना कह सकूं

किस पर करें भरोसा इस क़यामत  के दौर में




चश्मे बददूर है तू, मेरे दिल का नूर है तू - अंदाज़े शायरी

१.


चश्मे बददूर है तू, मेरे दिल का नूर है तू

मैं चाहता हूँ तुझको, मेरे दिल के करीब है तू

मेरी आशिकी है तुझसे , मेरी मुहब्बत की आरजू है तू

चश्म - ओ - चिराग हो जानम , मेरी शायरी का आगज़ है तू

२.



गुमान न कर तू , अपने हुख पर ऐ जानम

मैं गिरिफ्तार तेरी हर एक अदा पर हुआ

तेरी खामोश निगाहें बता रहीं सब कुछ

मेरी जानम तुझको भी मुझसे प्यार हुआ


3.


तेरे ख़्वाबों से रोशन है , मेरे ख़्वाबों की दुनिया

ख्वाहिश है मेरा ख्याले मुहब्बत , तेरा ख्याले इश्क हो जाए

पलक बिछा के बैठे हैं तेरी राह में हम

तू मेरे ख्वाहिशे इश्क का शुरूर हो जाए


4.


खुशनसीब हैं वो कायम है जिनकी कलम का जादू

खुशनसीब हैं वो कायम है जिनकी शायरी का वजूद

खुशनसीब हैं वो जिनकी  सत्ता में रोशन हुए लाखों घर

खुशनसीब हैं वो जिन पर हुई उस खुदा की मेहर




Wednesday, 11 March 2015

हमें उनसे रूठने की आदत ही सही

हमें उनसे रूठने की आदत ही सही

हमें उनसे रूठने की आदत ही सही
उन्हें हमें न मनाने की आदत ही सही

रश्क़ नहीं है हमको उनकी खूबसूरती  से
उन पर मर मिटने की हमारी हसरत ही सही

ताउम्र जिनके ग़मों का हिस्सा हुए थे हम
उन्हें हमसे मुहब्बत न सही ,अदावत ही सही

जिनकी यादों में हमने गुजरीं रातें रो- रोकर
उन्हें हमसे मुहब्बत न सही , नफरत ही सही

हमने उनको अपना दुश्मन नहीं समझा
मुझसे दोस्ती न सही , गैर से मुहब्बत ही सही

मुझे तुझसे वफ़ा की उम्मीद थी जानम
मुझसे जफा ही सही , गैर से वफ़ा ही  
सही

उनके बुरे वक़्त का सहारा हुए थे हम
हमसे दुश्मनी ही सही , गैरों से दोस्ती ही सही

उनके इश्क में तनहा गुजरीं थी कई रातें मेरी
वो मेरे हुए न सही , गैर की बाहों में सही

हमें उनसे रूठने की आदत ही सही

उन्हें हमें मनाने की आदत ही सही 

शरणागत मैं शरण तुम्हारी

शरणागत मैं शरण तुम्हारी

शरणागत मैं शरण तुम्हारी
तुम पर मैं जाऊं बलिहारी
बंधन मुक्त करो मेरे प्रभु जी
चरण कमल पर मैं बलिहारी

शरणागत मैं शरण तुम्हारी
तुम पर मैं जाऊं बलिहारी

प्रेम भाव से पूजूँ तुझको
भक्तिभाव से निहारूं
मन मंदिर में बस जाओ तुम
आया मैं शरण तुम्हारी

शरणागत मैं शरण तुम्हारी
तुम पर मैं जाऊं बलिहारी

क्षमा करो अपराध हमारे
दुर्गुण हों सब दूर हमारे
संयम का तुम मार्ग दिखाओ
कर्तव्य राह पर लेकर आओ

शरणागत मैं शरण तुम्हारी
तुम पर मैं जाऊं बलिहारी

सद् व्यवहार करूँ मैं प्रभु जी
सत्य राह चलूँ मैं प्रभु जी
दुष्ट जनों से हमें बचालो
अपनी शरण में हमें लगा लो

शरणागत मैं शरण तुम्हारी
तुम पर मैं जाऊं बलिहारी

विचलित न हो मन मेरा
भक्ति मार्ग से मुंह न मोड़ें
रक्षक तुम बन जाओ मेरे
पाप हरो मैं शरण तुम्हारी

शरणागत मैं शरण तुम्हारी
तुम पर मैं जाऊं बलिहारी





कामना, लालसा में न फंस जाना तुम

कामना ,लालसा में न फंस जाना तुम

कामना लालसा में न फंस जाना तुम
इंसानियत का एक जहां बसाना तुम
पले जहां मानवता हर एक के दिल में
ऐसे पुष्पों का एक उपवन बनाना तुम


सलिला, समीर सा पावन हो जाना तुम
सरोवर में प्रेम रुपी नीरज खिलाना तुम
सरिता सा पावन हो हर एक दिल
ऐसी पावन एक नगरी बसाना तुम

अपने – पराये में न उलझ जाना तुम
सबसे अपनापन जताना तुम
जिन्दगी होती है चार दिनों की
सभी के दिलों में एक कोना पाना तुम

मान – सम्मान के बीच न फंस जाना तुम
अपने स्वाभिमान को न लजाना तुम
यश – अपयश की चिंता न करना
कर्तव्य मार्ग पर यूं ही बढ़ते जाना तुम

कामना लालसा में न फंस जाना तुम
इंसानियत का एक जहां बसाना तुम
पले जहां मानवता हर एक के दिल में
ऐसे पुष्पों का एक उपवन बनाना तुम


हे मानव , कैसी ये दुनिया तेरी

हे मानव , कैसी ये दुनिया तेरी

पत्थर की सूरत को
तुम समझ रहे भगवान
जीते जागते मानव को
समझो न तुम इंसान

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

बीच समंदर जो उतराए
उसको न कभी तू बचाये
नूर देख तो करे आरती 
तू कैसा इंसान

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

गिरते जो बीच राह में
मिलता नहीं सहारा
उठे हुओं को और उठाये
ये कैसा इन्साफ

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

पावन थी जो गंगा अपनी
उसको भी न बख्शा
कामधेनु को माँ कहता तू
पूत कहाँ का सच्चा

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

चीरहरण हो रहे आये दिन
नारी , मुक्ति की बात जोहती
युवा पीढ़ी के विचारों को
लगा ये कैसा ग्रहण

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

अभिवादन को तू न पूजे
अभिनन्दन की राह न खोजे
अनुकम्पा से नाता जोड़े
कैसा ये आधुनिकता का प्रभाव

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

अहंकार की झूठी शान दिखाए
परिहास को तू अपनाए
पछतावा तुझको न होता
बीज किस तरह के तू बोता

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

दुनिया दुखिया तेरे कारण
दुष्चरित्र बने दुःख का कारण
पीर पराई भूल चुका तू
कैसे हो तेरा नाम

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

कुरीतियों में तू है उलझा
सत्मार्ग तुझे नहीं सूझा
मूल्यों की तुझे परख नहीं
कब सीखेगा नैतिकता का ज्ञान

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

कुसंस्कार बने धरोहर
करते बड़ों का सभी निरादर
स्वाभाविक विचार नहीं तेरा
करता सब कुछ मेरा – मेरा

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी
कहने को इंसान

आरोपों में दुनिया उलझी
बात नहीं कोई है सुलझी
उत्कर्ष तेरा नहीं है संभव
सब कुछ लगता असंभव

हे मानव ,कैसी ये दुनिया तेरी

कहने को इंसान 

करवा चौथ

करवा चौथ

करवा चौथ की घड़ी है आई
सज रहे लोग - लुगाई
मन में उठ रही उमंगें
प्यार को जगाती तरंगें

प्रेयसी प्रियतम को मिलने को व्याकुल
प्रियतम भी प्रेयसी को मिलने को आकुल
कैसी प्रेम , श्रृंगार की घड़ी ये आई
सज रहे लोग - लुगाई

हाथों में चूड़ी , माथे पे बिंदी
लग रही नार , सुन्दरता की मूर्ति
प्रेयसी – प्रियतम को पसंद रीत ये आई
सज रहे लोग - लुगाई

नाक में लौंग , कानों में बाली
आज सजी है ये नखरेवाली
प्रेम की अजब रीत ये बनाई
सज रहे लोग - लुगाई

बाज़ार की छटा भी है निराली
श्रृंगार की दुकानों पर भीड़ है भारी
प्रेयसी को खुश करने की प्रियतम की बारी है आई
सज रहे लोग - लुगाई

रूठना – मनाना आज नहीं होगा
नखरा दिखाना आज नहीं होगा
प्यार करने की रात है आई
सज रहे लोग - लुगाई

करवा चौथ की घड़ी है आई
सज रहे लोग - लुगाई
करवा चौथ की घड़ी है आई
सज रहे लोग - लुगाई