जिन्दगी का राग
आठ साल की बच्ची
अपनी गोदी में
एक साल के बच्चे को उठाये
बारिश में भीगती
रेड लाइट चौक पर
हाथ पसारे
बेबस निगाहों से दौड़ती
पीछा करती कारों का
कोई पुचकारता
तो कोई दुत्कार देता
कोई दस के नोट से तो कोई सिक्के
से ही काम चला लेता
भाई को दूध जो पिलाना है
बिस्तर पर पड़ी माँ के लिए
दवाई भी तो लाना है
शराबी पिता का
नहीं ठिकाना है
टप - टप
करती झोपडी में
खुद को और ....... को भी बचाना है
यही जिन्दगी का राग है
नहीं कोई आसपास है
फिर वही सुबह
फिर वही राग
फिर वही रेड लाइट चौक
फिर वही पुचकार, दुत्कार और दुलार ...........
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