Tuesday, 16 February 2021

जिन्दगी का राग

 

जिन्दगी का राग

 

आठ साल की बच्ची

अपनी गोदी में

एक साल के बच्चे को उठाये

 

बारिश में भीगती

रेड लाइट चौक पर

हाथ पसारे

 

बेबस निगाहों से दौड़ती

पीछा करती कारों का

 

कोई पुचकारता

तो कोई दुत्कार देता

 

कोई दस के नोट से तो कोई सिक्के

से ही काम चला लेता

 

भाई को दूध जो पिलाना है

बिस्तर पर पड़ी माँ के लिए

दवाई भी तो लाना है

 

शराबी पिता का

नहीं ठिकाना है

 

टप  - टप करती झोपडी में

खुद को और ....... को भी बचाना है

 

यही जिन्दगी का राग है

नहीं कोई आसपास है

 

फिर वही सुबह

फिर वही राग

फिर वही रेड लाइट चौक

फिर वही पुचकार, दुत्कार और दुलार ...........

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