बहुत भटक लिया हूँ मैं
बहुत भटक लिया हूँ मैं
बहुत बहक लिया हूँ मैं
बहुत कर ली है मस्ती
बहुत चहक लिया हूँ मैं
बहुत कर ली शरारतें मैंने
बहुत बिगड़ लिया हूँ मैं
अब मुझे विश्राम चाहिए
कुछ देर आराम चाहिए
इस उलझनों से
इन बेपरवाह नादानियों से
एक दिशा देनी होगी
अपने जीवन को
कहीं तो देना होगा
ठहराव इस जिन्दगी को
कब तक यूं ही भटकता रहूँगा
कब तक यूं ही बहकता रहूँगा
सोचता हूँ
चंद कदम बढ़ चलूँ
आध्यात्म की राह पर
मोक्ष की आस में नहीं
एक सार्थक
एक अर्थपूर्ण
जीवन की ओर
जहां मैं और केवल वो
जो है सर्वशक्तिमान
शायद मुझे
अपनी पनाह में ले ले
तो चलता हूँ उस दिशा की ओर
और आप .........................
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