Wednesday, 17 February 2021

मेरी कलम से पूछो

 

मेरी कलम से पूछो

 

मेरी कलम से पूछो

कितने दर्द समाये हुए है

 

मेरी कलम से पूछो

आंसुओं में नहाये हुए है

 

जब भी दर्द का समंदर देखती है

रो पड़ती है

 

सिसकती साँसों से होता है जब इसका परिचय

सिसक उठती है

 

ऋषिगंगा की बाढ़ की लहरों में तड़पती जिंदगियां देख

रुदन से भर उठती है

 

मेरी कलम से पूछो

कितनी अकाल मृत्युओं का दर्द समाये हुए है

 

वो कली से फूल में बदल भी न पाई थी

 रौंद दी गयी

 

मेरी कलम से पूछो

उसकी चीखों के समंदर में डूबी हुई है

 

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