मेरी कलम से पूछो
मेरी कलम से पूछो
कितने दर्द समाये हुए है
मेरी कलम से पूछो
आंसुओं में नहाये हुए है
जब भी दर्द का समंदर देखती है
रो पड़ती है
सिसकती साँसों से होता है जब इसका
परिचय
सिसक उठती है
ऋषिगंगा की बाढ़ की लहरों में तड़पती
जिंदगियां देख
रुदन से भर उठती है
मेरी कलम से पूछो
कितनी अकाल मृत्युओं का दर्द समाये
हुए है
वो कली से फूल में बदल भी न पाई थी
रौंद दी गयी
मेरी कलम से पूछो
उसकी चीखों के समंदर में डूबी हुई
है
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