हर एक दरख़्त में दरार नज़र आ रही
क्यूं है
हर एक दरख़्त में दरार नज़र आ
रही क्यूं है
पीर दिल की दिल में नासूर
बन पल रही क्यूं है
एक अदद चाँद की ख्वाहिश में
हर एक शख्स जी रहा क्यूं है
गम से निजात पाने को हर
शख्स पी रहा क्यूं है
ग़मगीन - ग़मगीन सा हर एक शख्स नज़र आ रहा क्यूं है
खुद से ही आँखें मिलाने से
हर एक शख्स डर रहा क्यूं है
इस बेरहम दुनिया में
जिन्दगी नासूर बन पल रही क्यूं है
सहमा – सहमा सा हर एक शख्स
खुद पर तरस खा रहा क्यूं है
डरी - डरी सी निगाहों के साथ हर एक शख्स जी रहा
क्यूं है
खुदा के दर पर आज मेला लगता
नहीं क्यूं है
पब और बियर बार जवानी का
शगल बन उभर रहे क्यूं हैं
खुदा की राह पर अब लोगों का
एतबार रहा नहीं क्यूं है
आसमानी चाँद की चाह में घर
के चाँद से आदमी मुंह मोड़ रहा क्यूं है
नापाक इरादों के साए में आज
का आदमी पल रहा क्यूं है
खुदा की इस अनजान कायनात
में आदमी भटक रहा क्यूं है
खुदा के बन्दों पर एतबार
नहीं खुद पर भी एतबार नहीं क्यूं है
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