Monday, 21 October 2013

मैं चाहता हूँ

मैं चाहता हूँ

मैं चाहता हूँ
एक जहां बसाना
जिस पर हो
तारों का ठिकाना

चन्दा करता हो अठखेलियाँ
बाद्लों के पीछे
कभी सूरज अपनी शरारतपूर्ण
हरकतों से चाँद को
करता दिखता हो परेशान 

चाहता हूँ एक जहां बसाना
जहां बादल बूंदों को
अपने में समाये
बादल जो धरा पर
जीवन तत्व की बरसात
करते हैं
मैं चाहता हूँ
एक ऐसा ठिकाना
जहां आसमां पर
जीवन के सतरंगे
पलों को अपने में समाये
इन्द्रधनुष दिखाई देता है

मेरा मन चाहता है
एक ऐसा आशियाँ
जहां भोर होते ही
पंक्षियों की चहचहाहट
सुनाई देती है

जहां सुबह की भोर के आलाप
मनुष्य को
उस परमात्मा से जोड़ते हैं

जहां पालने में
रोते बालक की
आवाज सुनते ही
माँ तीव्रगति से
अपने बच्चे की ओर भागकर
उसे  गले से लगा लेती है

मैं एक ऐसा जहां
बसाना चाहता हूँ
जहां संस्कार ,
संस्कृति के रूप में
पल्लवित होता है

यह वह जहां है
जहां मानव
मानव की परवाह करता है
नज़र आता है
जहां कोई
मानव बम  नहीं होता
जहाँ कोई आतंकवाद नहीं होता
जहां कोई धर्मवाद , जातिवाद ,
सम्प्रदायवाद नहीं होता









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