Friday, 13 January 2023

नेता


नेता

अपने लिए जिए , जिए तो क्या जिए नेता
जीना है तो जी तू , जनता के लिए

सच के साए में , जीना तू सीख ले
खोल खजाने ,जनता के लिए

क्यूं कर तू चंदा मांगे , पार्टी के लिए
जीना है तो जी तू देश के लिए

क्यूं कर रोज गिरता तू , खुदा की निगाह में
खुद को कर बुलंद , खुदा की निगाह में

क्यूं कर हैं सारी कोशिशें , अमीरों के लिए
कुछ कोशिश कर , तू जनता के लिए

शक्ति के मद में तू, अनुचित न कर
अपराधियों को तू , अपनी शरण में क्यूं रखे

समानता का अधिकार तू , जनता को भी दे
अपने अहंकार में खुद को तू, खुदा न समझ

नेता हो तो , देश सेवा को सर्वोपरि समझो
सत्ता के लोभ में तू, यूं न न फंस

लोगों के दुःख को , अपना दुःख समझ
यूं तू गरीबों की मजबूरी का ,मज़ाक न बना

जीना है तो जी, तू देश के लिए
क्यूं कर तू जाने  - अनजाने अपराध करे

अपने लिए जिए , जिए तो क्या जिए नेता
जीना है तो जी तू , जनता के लिए

वृद्धाश्रम – कहानी

 वृद्धाश्रम – कहानी

चंदेल जी के परिवार में दो बेटे मनोज और दिनेश के अलावा बेटी प्रिया भी थी l घर में चंदेल जी की पत्नी और माता सावित्री देवी भी रहती थीं l पिता को गुजरे वर्षों बीत गए थे l
चंदेल जी काफी समझदार व्यक्ति थे l घर में खुशी का माहौल बना रहता था l बच्चे भी दादी को खुश रखते थे l पर यह खुशी ज्यादा दिन तक न रह सकी l हुआ यूँ कि चंदेल जी के परिवार में दूर की बुआ घूमने आयीं l कुछ दिन रहीं और चली गईं l पड़ोस की मिश्रा जी एवं यादव जी की पत्नी भी कभी – कभी आ जाती और दादी से बातें करके चली जाती l किसी रिश्तेदार का घर आना अर्थात् भगवान का घर आना माना जाता है किन्तु जब ये मेहमान घर में फूट का बीज बो जाते हैं तब मन को कष्ट होता है | ऐसा ही चंदेल जी की बुआ ने किया और उनकी पड़ोसन ने | आइये आगे क्या हुआ देखते हैं इस कहानी में |
दो चार दिन बाद दादी के व्यवहार में परिवर्तन होना शुरू हो गया l अब दादी सास – बहू के टी वी सीरियल देखने की जिद करने लगी l बच्चों और दादी में कई बार तू – तू मैं – मैं होनी शुरू होने लगी l मामला और भी गंभीर होने लगा जब दादी अपनी बहु प्रिया पर तीखे प्रहार करने लगी l सभी दादी के इस व्यवहार से खुश नहीं थे l पर दादी के सिर पर तो मानो चंडी सवार हो गयी थी l अब दादी पड़ोसियों के घर भी जाने लगी और अपने परिवार की बुराईयां करने लगी l चंदेल जी का परिवार यह सब सहन करने की स्थिति में नहीं था l
चंदेल जी ने भी पूरी कोशिश की कि किसी तरह माँ के व्यवहार में पहले जैसा निखार आ जाये किन्तु वे भी असफल रहे l चंदेल जी ने अपनी माँ को कुछ दिन के लिए अपने छोटे भाई के पास भेज दिया ताकि कुछ बदलाव आ जाये l किन्तु दादी का यही व्यवहार वहाँ भी छोटे भाई और उसकी पत्नी के साथ भी बना रहा l सभी सोच में पड़ गए कि आखिर दादी ऐसा क्यों कर रही हैं l कुछ दिन बाद दादी वापस आ गयी l पर स्थिति वही बनी रही l
थक हारकर चंदेल जी ने एक निर्णय लिया और अपनी माँ को शहर के ही एक वृद्धाश्रम में छोड़ आए l अब दादी की हालत ख़राब होने लगी | पर मन मसोस कर वे आश्रम में रहने लगीं और घर के लोगों की सभी से चुगली करने लगीं | पर उनकी बातों का किसी पर कोई असर नहीं होता था l वे सब सुनते और मुस्कुरा देते l एक दिन आश्रम में कोई विशेष कार्यक्रम था l जोर शोर से तैयारियाँ हो रही थीं l सभी आज के कार्यक्रम के मेहमान को देखने के लिए उत्सुक थे l कार्यक्रम शुरू हुआ तो मेहमान की कुर्सी पर चंदेल जी विराजमान थे l उन्हैं देखते ही उनकी माँ जोर – जोर से चिल्लाने लगी l लोगों ने किसी तरह उन्हैं चुप कराया l
आश्रम के प्रबंधक महोदय ने चंदेल जी का स्वागत किया और इस आश्रम की स्थापना के लिए चंदेल जी को सम्मानित किया l अगले दिन चंदेल जी के बारे में किसी ने उनकी माँ को बताया कि आपके बेटे ने ही इस आश्रम की स्थापना की थी ताकि घर से बेघर हुए माता – पिता को इस आश्रम में जगह मिले और वे अपना जीवन आराम से गुजार सकें | एक और अच्छी बात ये है कि जिन बच्चों के माता – पिता ने अपने बच्चों के साथ बुरा बर्ताव किया उन्हें भी वे अपनी कोशिशों से उनके घर वापस भेज देते हैं ताकि उनके घर में पहले जैसी खुशियाँ वापस लौट सकें | अब चंदेल जी की माँ को अपने किये पर पछतावा होने लगा और उन्होंने भी अपने बर्ताव में परिवर्तन लाने शुरू कर दिए और आश्रम के अधिकारी से अपने घर के सभी सदस्यों से बात कराने को कहा | अधिकारी महोदय ने उनकी बात सभी से करवायी | दादी सभी से माफ़ी मांग रही थी | अपनी बहु से , बेटे से | सभी एक साथ उनको वापस घर ले जाने के लिए थोड़ी देर बाद ही वृद्धाश्रम आ पहुंचे |
चंदेल जी की माँ अपने आपको अपने परिवार के बीच पाकर बहुत खुश थी और घर के सभी लोग भी |

चमचागिरी – एक कला

 चमचागिरी – एक कला

चमचागिरी एक कला है l इसमे पारंगत होने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती l यह आपके द्वारा किए गए सामान्य प्रयासों से आरंभ होकर धीरे – धीरे आपको एक विशेष पद पर आसीन कर देता है जहां आप एक “चमचे” के रूप में अपनी पहचान बना लेते हैं | चमचा होने के लिए कुछ विशेष योग्यताओं का होना अति आवश्यक है | जैसे आपको एक गधे को भी एक समझदार प्राणी कहने की क्षमता अपने आप में पैदा करनी होगी | जिस व्यक्ति के आप चमचे बनना चाहते हैं उससे और उसके परिवार के प्रति आपको पूर्ण रूप से वफादार होना होगा | फिर चाहे आपको इसके लिए अपनी आत्मा को भी तिलांजलि देनी पड़े | चमचागिरी के लिए आपको फुसफुसाहट के साथ बात करने की प्रवृत्ति अपने भीतर समाहित करनी होती है | जोर – जोर से चिल्लाकर आप किसी से बात नहीं कर सकते क्योंकि चमचागिरी का सबसे नायाब फ़ॉर्मूला यह है कि दीवार को भी आपकी बात सुनाई न दे |
चमचे की एक और खासियत होती है कि वह स्वयं को भीड़ में शामिल रखते हुए भी अकेला होने का एहसास बनाए रखता है | यानी सबकी सुनो और उसमे से अपने मतलब की बात ढूंढो और सही जगह पर उस बात को डिलीवर कर दो | चमचा कोई भी जन्म से पैदा नहीं होता न ही चमचा तैयार करने की कोई फैक्ट्री होती है जहां चमचे तैयार किये जाएँ | चमचा बनने का एक ही फायदा है कि दूसरों का काम बिगड़े और हमारा काम बने |
चमचागिरी एक चाय से शुरू होकर बड़ी – बड़ी डील तक पहुँच जाती है | चमचों को अंग्रेजी में “स्पून” भी कहते हैं | चम्मच से शुरू होकर ये कब कड़छुल या झरिये का रूप ले लेते है शायद इनका भान इन्हें भी नहीं होता | वैसे देखें तो चम्मच हर जगह आसानी से मिल जाते है | जैसे राजनीति में , सरकारी दफ्तर में , किसी कम्पनी में , स्कूल में या यूं कहें हमारे चारों ओर के परिवेश में कहीं भी | आज इनकी बहुतायत हो गयी है | कोई भी काम बिना स्पूनिंग के बनता ही नहीं | एक बात और कि चमचे हमेशा खुद को 90 डिग्री तक झुकाकर रखते हैं | इनकी यही खासियत इनको किसी का भी शागिर्द बना देती है | चमचों में एक और गुण विशेष रूप से पाया जाता है वो यह कि अपने बॉस को देखते ही ये एक विशेष शीरीरिक मुद्रा में प्रदर्शित करना शुरू कर देते हैं और अपनी बात को किस तरह शुरू किया जाए इसका भान इन्हें होता है | साथ ही जिनके साथ इनकी बढ़िया जमने लगती है वे भी इनकी शारीरिक मुद्राओं से ही लिफ़ाफ़े का मजमून पढ़ लेते हैं |
चमचे जब भी कोई ख़ास बात अपने बॉस को डिलीवर करते हैं तो इनका अति उत्साह इस बात का परिचायक होता है कि इनकी कही जाने वाली बात से बॉस का खुश होना लाजमी है | चमचे उपरोक्त सभी कलाओं के अलावा बॉस के घर की सब्जी लाने, घर का सामान लाने , बर्तन मांजने , कपड़े धोने , सामान उठाने , डांट खाने , गालियाँ खाने आदि में भी परिपक्व होते हैं | ये गालियां खाने के बाद भी बॉस के सामने मुस्कुरा देते हैं | चमचों से ये दुनिया पटी पड़ी है | कई बार ये भी भ्रम होता है कि सामने वाला चमचा है या भक्त | क्योंकि चमचागिरी से शुरू होती ये यात्रा बॉस की “भक्ति” पर जाकर समाप्त होती है | कभी – कभी ये भक्ति “अंधभक्ति” में परिवर्तित होने में ज्यादा समय नहीं लेती | मेरी आपसे गुजारिश है कि आप भी एक बार चमचागिरी का आनंद उठायें पर अंधभक्ति से बचें | इस कला में स्वयं को पारंगत करें और फिर देखें कि आपके सभी काम कैसे आसानी से निपटते हैं | अपने अनुभाव हम सबके साथ जरूर साझा करें | All the best.


छन्न पकैया – छन्न पकैया – व्यंग्य - कविता

 छन्न पकैया – छन्न पकैया – व्यंग्य - कविता 

छन्न पकैया – छन्न पकैया
छन्न पे बैठा मोर

नेता सारे खा रहे
पेंशन झकझोर

पेंशन झकझोर
कि नीयत भरे न इनकी

मुद्दों से भटकाते जनता को
चुनाव के वक़्त मचाते शोर

चुनाव के वक़्त मचाते शोर
कि जनता वादों से हो गयी बोर

कि जनता वादों से हो गयी बोर
कि कब तक इनको झेलें भैया

कि कब तक इनको झेलें भैया
डूब रही जनता की नैया

डूब रही जनता की नैया
कौन है इनको खेवैया

कौन है इनको खेवैया
वोट की कीमत जानो

वोट की कीमत जानो
नेताओं को सबक सिखाओ

नेताओं को सबक सिखाओ
इनको कुर्सी से गिराओ

इनको कुर्सी से गिराओ
बेचारी जनता को बचाओ

बेचारी जनता को बचाओ
इन सबको काम दिलाओ

इन सबको काम दिलाओ
देश की अखंडता को बचाओ

देश की अखंडता को बचाओ
देश को आगे बढ़ाओ

देश को आगे बढ़ाओ
धर्म की राजनीति से बचाओ

धर्म की राजनीति से बचाओ
अपने दम पर आगे बढ़ो

अपने दम पर आगे बढ़ो
अपने दम पर आगे बढ़ो

मास्टर जी – कहानी

 मास्टर जी – कहानी

शहर के बीचों बीच स्थित सरकारी स्कूल में पवन अग्रवाल जी अध्यापक के पद पर कार्यरत थे | वहीं शहर के एस डी एम प्रेमलाल का बेटा भी न चाहते हुए इसी स्कूल में अध्ययन कर रहा था | बेटे का नाम रोहित था | एस डी एम प्रेमलाल का बेटा रोहित अपनी ओर से पूरी कोशिश कर चुका था कि उसे शहर के ही किसी कान्वेंट स्कूल में पढ़ाया जाए किन्तु न तो रोहित और न ही उसकी माँ की कोई कोशिश कामयाब हुई | एस डी एम प्रेमलाल ने उसे सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलवा दिया | रोहित को अपने पिता के उच्च पद पर आसीन होने का गुमान था जबकि दूसरी ओर मास्टर पवन अग्रवाल जी का लगभग सभी बच्चों के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार था | रोहित को सबसे पहले जिस बात से रोष था वह था कि इस स्कूल के टीचर उतने अच्छे कपड़े नहीं पहनते थे दूसरी ओर इस स्कूल में वो सभी को अपने से नीचा समझता था | इसीलिए किसी के साथ उसकी बनती नहीं थी | कभी – कभी पवन अग्रवाल जी रोहित के घर उसके पिता से मिलने आते तो रोहित के पिता अग्रवाल जी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते जो रोहित को अच्छा नहीं लगता | रोहित के पिता का मास्टरजी के साथ हंसकर बात करना भी रोहित को पसंद नहीं था |
रोहित अपनी कक्षा के सभी बच्चों से दूर अलग बेंच पर बैठा करता था | और अपना भोजन अकेले किया करता था | स्कूल के नल का पानी भी वह नहीं पीता था | उसे न तो किसी का सम्मान करना आता था और न ही वह किसी का सम्मान किया करता था | जबकि रोहित के पिता समय – समय पर इस स्कूल आकर स्कूल की बेहतरी के लिए अपनी ओर से और सरकारी मदद से काम करवा दिया करते थे ताकि स्कूल के बच्चों को कोई परेशानी न हो | स्कूल के विशेष अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में रोहित के पिता को सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया जाता था | जैसे 26 जनवरी , 15 अगस्त, वार्षिक उत्सव, वार्षिक खेलकूद आदि अवसरों पर | प्रत्येक अवसर पर रोहित के पिता प्रेमलाल जी स्कूल को अपनी ओर से उपहार दे जाया करते थे | रोहित को अपने पिता का बार – बार स्कूल आना अच्छा नहीं लगता था और स्कूल को जो उपहार दिए जाते थे उसे भी वह फिजूलखर्ची समझता था | पर उसे एक बात का गर्व था कि जब भी उसके पिता स्कूल आते सभी शिक्षक उसके पिता के सम्मान में हाथ जोड़कर खड़े हो जाया करते थे | धीरे – धीरे रोहित का घमंड बढ़ने लगता है | और वह शरारती होने लगता है | किसी बच्चे के साथ मारपीट तो किसी टीचर के बारे में ऊलजलूल बकना |
एक दिन गुस्से में आकर रोहित अपनी ही कक्षा के एक बच्चे का सिर फोड़ देता है | टीचर उस बच्चे को अस्पताल ले जाते हैं | बच्चे के सिर पर पांच टाँके लगते हैं | यह बात स्कूल के सभी बच्चों में फ़ैल जाती है | रोहित इस घटना के बारे में अपने घर पर किसी को कुछ नहीं बताता | अगले दिन प्रेमलाल जी के दफ्तर का चपरासी स्कूल में हुई घटना के बारे में बताता है | चपरासी का बेटा भी उसी स्कूल में पढता था सो उसने घटना के बारे में अपने पिता को सब कुछ बता दिया था | प्रेमलाल जी तुरंत उस बच्चे से मिलने उसके पास उसके घर जाते हैं और उस बच्चे के माता – पिता को आर्थिक मदद के साथ फलों की टोकरी भी देकर आते हैं | शाम को प्रेमलाल जी अपने बेटे रोहित से बातों – बातों में स्कूल के बारे में पूछते हैं और मास्टर पवन अग्रवाल जी के बारे में भी पूछते हैं | रोहित टेढ़ा सा मुंह बना लेता है | और कहता है कि पापा अपने मुझे वहां सड़े से टीचरों के बीच फंसा दिया है | रोहित के इतना कहते ही रोहित के गाल पर एक जोर का तमाचा पड़ता है और वह एक ओर जा गिरता है | उसके पिता उसे उठाकर बताते हैं कि जिन टीचरों को तुम सड़े टीचर कह रहे हो मैं उनके द्वारा दी गयी आर्थिक सहायता और मार्गदर्शन के दम पर ही आज मैं एस डी एम बन पाया हूँ | मैं भी उसी स्कूल से पढ़कर आज इस पद पर आसीन हूँ | तुम्हारे टीचर श्री पवन अग्रवाल जी ने न जाने कितने बच्चों की आर्थिक मदद की है और उनका मार्गदर्शन भी | और तुम उस स्कूल को खराब और गन्दा कह रहे हो | तुम्हें मालूम होना चाहिए कि आदमी अपने कपड़ों से नहीं जाना जाता | उसके द्वारा किये गए उत्तम कार्यों से उसकी पहचान होती है | मेरे माता – पिता की इतनी हैसियत नहीं थी कि वे मुझे किसी अच्छे से स्कूल में पढ़ा पाते | मैं तुम्हारे इसी सरकारी स्कूल के शिक्षकों का ऋणी हूँ और आजीवन रहूँगा | और हाँ जिस बच्चे का सिर तुमने फोड़ा था उसके माता – पिता तो तुम्हारी पुलिस में शिकायत करना चाहते थे और तुम्हें बाल सुधारालय भिजवाना चाहते थे | पर मैंने तुम्हारे लिए उसने माफ़ी मांगी |
रोहित को एक तमाचे और पिता द्वारा दी गयी सीख से शिक्षक की महिमा का ज्ञान हो गया | रोहित अपने पिता के पैरों में पड़ गया और माफ़ी मांगने लगा | और आगे से किसी का भी अपमान न करने का वादा किया और सभी बच्चों के साथ मिलकर रहने का प्रण भी किया |


पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें

पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें

पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें l
पलती हों जहां खुशियाँ, चलो एक ऐसा आशियाँ सजाएँ ll

हर एक चहरे पर हो मुस्कान, ना हो ग़मों का कोई निशान l
फेहरे जहां संस्कृति, संस्कारों का परचम, चलो एक ऐसा उपवन सजाएँ ll

जहां ना हो कोई कुटिल राजनीति का शिकार, ना ही अंधभक्ति सिर चढ़कर बोले l
सादा हो जीवन, सदविचारों से पुष्पित, चलो एक ऐसा गुलशन सजाएँ ll

जहां ना हो कोई नवजात, कूड़े के ढेर का हिस्सा l
चलो मातृत्व के वात्सल्य से पोषित एक खूबसूरत जहां बसायें ll

भाई को भाई से हो मुहब्बत, रिश्तों में पावनता झलके l
चलो पारिवारिक संस्कृति और संस्कारों का परचम लहरायें ll

हो चहरों पर मुस्कान, दिलों में ना गिला शिकवा हो l
चलो आपसी मुहब्बत से रोशन एक आशियाँ सजाएँ ll

जहां राम ना रहीम को लेकर हो वैमनस्य मन में l
चलो राम और रहीम की पावन छवि से अपना आशियाँ सजाएँ ll

एक ऐसा जहां ना पलती हो राजनीति, ना हो धर्म पर अंधविश्वास l
अपनी इस धरा को, उपवन को एक खूबसूरत उपवन बनाएं ll

पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें l
पलती हों जहां खुशियाँ, चलो ऐसा आशियाँ सजाएँ ll

आजादी का जुनून – एक पुण्य सोच

 आजादी का जुनून – एक पुण्य सोच

परतंत्र भारत में आजादी का जुनून सभी के सिर चढ़कर बोल रहा था l उन आजादी के दीवानों मे कुछ लाठियां झेलने तो कुछ गोलियाँ झेलने को तैयार थे तो कुछ सूली पर चढ़ जाने को तो कुछ गोलियाँ बरसाने को l आजादी के दीवानों मे जिन्होंने गोलियाँ खाने और बरसाने वाला रास्ता चुना उनका आजादी के जुनून का सफर लंबा नहीं रहा l पर उन चली गोलियों और बमों की आवाज़ आज भी हमारे कानों में गूँज रही है l और उनके द्वारा चलाये गए बमों और और गोलियों की आवाज भी | किन्तु जो आजादी के दीवाने सत्याग्रह की राह पर चले और जो सहनशील थे वे लड़ते भी रहे और ब्रिटिश सत्ता पर अपना असर छोड़ते भी रहे l उनके सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन ने अंग्रेजों के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया l और वो दिन भी आ गया जब लालकिले की प्राचीर पर आजाद भारत का झंडा फहरा दिया गया l जो सूली पर चढ़ गए वो भी देशवासियों के दिल में एक जगह बना गए और जो जेल की अंधेरी काल कोठरी में आजादी का बिगुल बजाते रहे वे भी आज हमारे दिलों में राज कर रहे हैं l
समस्या इस बात की है कि इनके बलिदान को राजनीतिक अवसरवादिता ने राजनीतिक ज़ंग का मैदान बना दिया है l चुनाव आते ही राजनीति के आकाओं को इन देश प्रेमियों की याद आने लगती है | आवश्यकता तो इस बात की है कि हर दिन आजादी के दीवानों का दिन हो | न कि विशेष अवसर पर आधारित | हमें कोई हक़ नहीं है कि हम उनके बलिदान को इस तरह नकार दें | जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पित किया उनकी पुण्य सोच को इस तरह बिसार दें | चौराहों पर उनकी मूर्तियाँ लगाने से बेहतर है कि हम लोगों के दिलों में उनका एक मुकाम सुनिश्चित करें | उनके समर्पण को इस तरह जाया न करें | नेताओं की कुटिल चालों से बचें | गर नेताओं में राष्ट्रभक्ति का इतना ज़ज्बा होता तो उनके घर का एक – एक बच्चा आज हमारे देश की सेना का हिस्सा होता | नेताओं की कुटिल राजनीति से बचें | और पूर्ण समर्पण के साथ देश के वीरों का सम्मान करें | उनके परिजनों का सम्मान करें जिन्होंने देश की आजादी, रक्षा और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अपने परिजनों का बलिदान दिया |
हमारे देश में राष्ट्रभक्ति के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले नेताओं की अपनी मंशा केवल और केवल कुर्सी पर कब्ज़ा ज़माना है | जनता की पीड़ा से इन्हें क्या लेना | आइये सच को जानें और सच को पहचानें और राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं | धार्मिक भेदभाव छोड़कर आपसे भाईचारे को बरकरार रख एक नए भारत का सपना साकार करें |

ढक्कन – कहानी

 ढक्कन – कहानी

मोहित अपने परिवार के साथ झुग्गी – झोपड़ी वाले इलाके में रहता था | माता – पिता दोनों दैनिक मजदूरी किया करते थे | घर में एक बहन भी थी जिया | जिया और मोहित की माँ आसपास के बड़े घर के लोगों के यहाँ झाड़ू – पोछे का काम करती थीं | मोहित के पिता पास ही एक फैक्ट्री में

काम किया करते थे | मोहित के पिता को शराब पीने का शौक था सो वे घर में किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं किया करते थे | घर का खर्च किसी तरह से चल रहा था | घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद भी जिया के ब्याह को लेकर घर में सभी चिंचित थे |

घर का माहौल ठीक न होने की वजह से भी मोहित पढ़ाई नहीं कर सका और दोस्तों के साथ आवारागर्दी में समय बिताने लगा | अपना खर्च चलाने के लिए वह दोस्तों के साथ कभी किसी का पर्स चुराने लगा तो कभी रेलवे स्टेशन पर किसी का पॉकेट मारने लगा | यहाँ तक कि वह महिलाओं के गले से सोने की चैन की झपटमारी भी करने लगा | कई बार वह जेल भी हो आया | घर वाले भी कोशिश कर चुके पर मोहित पर इसका कोई असर नहीं होता था | घर वालों ने मोहित को कई बार समझाया कि किसी दूकान पर काम कर ले या सब्जी का ठेला ही खोल ले | पर उसे तो रातों – रात अमीर बनना था | सो घर वालों की बातों को अनसुना कर देता |

धीरे – धीरे मोहित की आदतें बिगड़ने लगीं | वह पुलिस को बेवकूफ बनाने की कोशिश करता किन्तु उसकी ज्यादातर घटनाएँ सी सी टी वी कैमरे में रिकॉर्ड हो जातीं जिसके कारण वह कई बार पुलिस के चंगुल में फंस गया | छोटी – छोटी हरकतों के कारण उसे सजा भी छोटी मिलती इसलिए उस पर इनका कम असर होता | मोहित और उसके दोस्त कोई नया तरीका खोजने लगे ताकि काम भी हो जाए और घटना कहीं रिकॉर्ड भी न हो और जेल जाने से बच जाएँ | उनके दिमाग में एक विचार आया कि क्यों न शहर के बाहर की सड़कों पर सीवरेज पर लगे ढक्कनों को चुराया जाए | सो वे सभी इस काम पर लग गए | इस काम से उन्हें अच्छी रकम हाथ लगने लगी | जो रकम मिलती सब बराबर – बराबर बाँट लेते और अगली रात फिर वही ढक्कन को चुराने का खेल शुरू |

एक दिन सुबह – सुबह मोहित के घर पर उनके पडोसी जो मोहित के पिता के साथ फैक्ट्री में काम करते थे ने आकर बताया कि मोहित के पिता फैक्ट्री से लौटते वक़्त रात को सीवरेज टैंक में गिर गए और उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया है आप लोग जाकर देख लो | उनकी हालत गंभीर है | मोहित . उसकी माँ और बहन को पता चला तो वे अस्पताल भागे पर वहां जाकर पता चला कि मोहित के पिता की मृत्यु हो गयी है | यह सुनते ही मोहित को अपने आप से नफरत होने लगी कि जिस सीवरेज टैंक में गिरकर उसके पिता की मृत्यु हुई उसका ढक्कन उसने ही एक रात पहले चुराकर बेच दिया था | मोहित को एहसास ही नहीं था कि उस टैंक में गिरकर किसी की मृत्यु भी हो सकती है |

मोहित ने ये बात किसी को नहीं बतायी पर उसने मन ही मन निश्चय किया कि आज के बाद मैं ऐसे कोई भी गंदे काम नहीं करूंगा और मेहनत करके ही दो वक़्त की रोटी जुटाऊँगा | मोहित की मेहनत रंग लायी और उसने अपनी मेहनत की दम पर अपनी बहन की शादी भी की और अपनी माँ को भी लोगों के घर काम करने से मना किया | वे सभी एक खुशहाल जिन्दगी व्यतीत करने लगे |

भुलक्कड़ मोनू बंदर- कहानी

 भुलक्कड़ मोनू बंदर- कहानी

जंगल में बहुत से जानवर थे उनमे एक था मोनू बन्दर | उसका भुलक्कड़पन उसकी सबसे बड़ी समस्या थी | वैसे मोनू बन्दर को तैराकी करना, साइकिल चलाना , साइकिल पर स्टंट करना और साहसिक काम करना उसकी आदतें थीं | मोनू बन्दर तैराकी के मामले में सबसे बढ़िया तैराक था उसकी टक्कर का कोई तैराक पूरे जंगल में नहीं था | दूसरे जानवरों के साथ शरारतें करना, उन्हें परेशान करने में मोनू बन्दर को बहुत मजा आता था | मोनू बंदर की भूलने की आदत के कारण वह कई बार मुसीबत में पड़ चुका था |

एक बार की बात है जंगल की पास की एक नदी में एक बकरी का बच्चा बह गया | दूसरे जानवरों ने मोनू बन्दर से कहा कि वह एक बेहतर तैराक है सो वह कोशिश करे और बकरी के बच्चे को बचा ले | मोनू बंदर आनन् – फानन में नदी में कूद पड़ा | बकरी का बच्चा दूर तक बह गया जब तक मोनू बन्दर उसके पास पहुँचता तब तक वह यह भूल गया कि आखिर वह नदी में कूदा क्यों | उसके इस भुल्लककड़पन की वजह से बकरी का बच्चा नदी में डूब कर मर गया | जंगल के सभी जानवर मोनू बंदर को कोसने लगे कि तुम्हारी वजह से ही बकरी का बच्चा मर गया | मोनू बंदर को यह बात भीतर तक चोट कर गयी और उसने यह बात को अपने दिल पर ले लिया | अब उसने फैसला कर लिया कि वह जंगल के किसी पढ़े लिखे बुजुर्ग से सलाह लेगा कि वह ऐसा क्या करे कि उसकी भूलने की आदत ख़त्म हो जाए | वह भागा – भागा जंगल के एकमात्र सबसे समझदार और आदर्श टीचर श्री टकमक भालू के पास जा पहुंचा और सारी घटना बताकर अपने लिए कोई रास्ता सुझाने का निवेदन किया | टकमक भालू ने उसे योग शिक्षक श्री श्री टिल्लू प्रसाद जी बैल के पास जाने की सलाह दी |

जंगल के जानवरों को बिना बताये मोनू बंदर योग शिक्षक श्री श्री टिल्लू प्रसाद जी बैल के पास जा पहुंचा | पर उनके पास पहुंचते ही वह यह भूल गया कि वह किस काम के लिए योग शिक्षक श्री श्री टिल्लू प्रसाद जी बैल के पास आया है | पर योग शिक्षक श्री श्री टिल्लू प्रसाद जी बैल समझ गए कि मोनू बंदर उनके पास क्यों आया है | सो उन्होंने मोनू बन्दर को अपना शिष्य बना लिया | कुछ ही दिनों में छोटी – छोटी याद रखने वाली गतिविधियों जैसे पढ़ने , याद करने और लिखने और योग आसन जैसे प्राणायाम, पद्मासन , भ्रामरी आसन और याददाश्त से जुड़े अन्य आसनों के जरिये योग शिक्षक श्री श्री टिल्लू प्रसाद जी बैल ने उसकी भूल जाने की आदत को ख़त्म कर देते हैं | मोनू बंदर ने अपने गुरु योग शिक्षक श्री श्री टिल्लू प्रसाद जी बैल जी का कोटि – कोटि आभार व्यक्त किया और अपने घर की ओर चल दिया |

घर के रास्ते में मोनू बंदर को एक वही नदी मिली जिसमे डूबकर बकरी का बच्चा मर गया था | जब मोनू बंदर उस नदी को पार कर रहा था तभी उसने देखा कि नदी के बीचों – बीच एक गिलहरी का बच्चा डूब रहा है | नदी के किनारे खड़े जानवरों को मोनू बन्दर से कोई आस न थी | क्योंकि पिछली घटना सभी के मस्तिस्क में अभी भी बसी थी | पर मोनू बन्दर अपनी ओर से पूरी कोशिश कर गिलहरी के बच्चे को बचाकर नदी से बाहर ले आता है | सभी जानवर मोनू बंदर की तारीफ़ करते हैं और उससे अपने भूलने की आदत पर विजय पाने का राज पूछते हैं | मोनू बंदर योग शिक्षक श्री श्री टिल्लू प्रसाद जी बैल के बारे में सबको बताता है | सभी जानवर एक साथ कहते हैं कि वे भी आज से योग अभ्यास किया करेंगे | ताकि स्वस्थ रह सकें | जंगल में ख़ुशी का वातावरण निर्मित हो जाता है |

चूहों का बदला – कहानी

 चूहों का बदला – कहानी

जंगल में चूहों के परिवार एक विशेष स्थान पर रहते थे | उनकी संख्या सैकड़ों में थी | सभी एक परिवार की तरह एक दूसरे के साथ प्रेमभाव से रहते थे | जंगल के दूसरे जानवर भी उनकी आपसी समझ के कायल थे | पर एक समस्या उनके जी का जंजाल बनी हुई थी | वो यह कि जिस जगह पर वे सभी चूहे अपने परिवार के साथ रहते थे उसी जगह के पास से हाथियों का झुण्ड भोजन की खोज में जाया करता था जिसके कारण चूहों के बिल से मिटटी धसक कर गिर जाया करती थी जिसके कारण उनके बहुत से बच्चे मर जाते थे | चूहों ने मिलकर इसकी शिकायत जंगल के राजा मोनू शेर के पास की | राजा मोनू शेर ने हाथियों को किसी और रास्ते से जाने की सलाह दी | हाथियों ने जंगल के राजा की सलाह को मान लिया किन्तु उसका पालन नहीं किया और जंगल के राजा की बात को अनसुना कर दिया |

चूहों ने सोचा था कि हाथियों का झुण्ड जंगल के राजा की बात मान लेगा पर ऐसा नहीं हुआ | हाथियों के झुण्ड का उनके रहने के स्थान के पास से गुजरना जारी रहा और चूहों का परिवार अभी भी उसी समस्या का सामना कर रहा था | हाथियों की हरकत जब चूहों के बस के बाहर हो गई तो उन्होंने एक दिन चुपचाप बिना किसी को बताये एक गुप्त सभा का आयोजन किया जिसमे केवल चूहों के परिवारों से हिस्सा लिया | चूहों में सबसे समझदार पिंचू चूहे को सभा का अध्यक्ष बनाया गया | सभा की समिति में पांच और समझदार चूहों चिम्पू , गोलू, पिंटू , चिपलू और पीलू को शामिल किया गया | समस्या को आधिकारिक तौर पर चीनू चूहे ने समिति और अध्यक्ष के सामने रखा | पूरी बात सुनने के बाद समिति ने एक निर्णय लिया | पर यह निर्णय गुप्त रखा गया | निर्णय पर काम किस तरह से किया जाएगा इसका जिम्मा गोगलू चूहे को सौंपा गया | रात के अँधेरे में इस काम को अंजाम दिया जाएगा यह बात केवल गोगलू चूहे को बताई गयी |

चूहों के परिवार ने सबसे पहले एक सुरक्षित स्थान पर अपना नया ठिकाना बना लिया और हाथियों को सबक सिखाने के लिए जिस रास्ते से हाथियों का समूह भोजन की खोज में जाया करता था उसी रास्ते में जमीन के भीतर चूहों ने बिल बना दिये ताकि जब हाथियों का समूह वहां से गुजरे तो वे बिल में बने गड्ढों में फंस जाएँ | अगले दिन चूहों के परिवार हाथियों के झुण्ड के साथ होने वाली घटना का मजा लेने के लिए झाड़ियों में छुप गए थे | निश्चित समय पर हाथियों का उसी रास्ते से निकला जिस पर बड़े – बड़े बिल खोद दिए गए थे | एक – एक करके हाथियों के पैर उसमे धंसते चले गए | हाथियों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है | चूहों को मजा आ रहा था | क्योंकि हाथियों के समूह ने उनकी और जंगल के राजा की बात नहीं मानी थी |

इस घटना के बाद हाथियों के झुण्ड को समझ आ गया कि चूहों ने अपना बदला ले लिया | हाथियों के झुण्ड ने चूहों के परिवारों से माफ़ी मांगी और भविष्य में ऐसी कोई भी गलती न करने का वादा किया | सभी जानवर मिल जुलकर ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगे |

विचार

 विचार

“प्रतिकूल परिस्थिति में भी दृढ इच्छाशक्ति का परिचय ही सफलता का मूल मंत्र है “

प्रयास ( एक सद्विचार )

 प्रयास ( एक सद्विचार )


# प्रयास सफलता की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है |

# प्रयास ऐसे करें कि सफलता सुनिश्चित हो जाए |

# स्वयं के प्रयासों पर विश्वास करें दूसरों को अपनी वैशाखी न बनाएं |

# चंद प्रयासों की विफलता इस बात का सूचक नहीं कि आप जीवन में सफल नहीं हो सकते |

# अपने प्रयासों को अपनी मंजिल का हमसफ़र बनाएं और बढ़ चलें मंजिल की ओर |

# अपने प्रयासों , अपनी कोशिशों को अप अपने जीवन की अमूल्य धरोहर बनाएं |

# योजनाबद्ध तरीके से प्रयास करें निश्चित ही सफलता आपके कदम चूमेगी |

# ऐसे प्रयास बिलकुल न करें जिनके करने से आपको कुछ भी हासिल न हो | यह केवल श्रम , पैसे और समय की बर्बादी होगा |

# अपने प्रयासों को सही दिशा में प्रयोग करें |

# प्रयासों का एक कारवाँ सजाएं ताकि आप सफल हो सकें |

# आपके प्रयास, आपकी कोशिशें आपके सफल होने का परिचायक हैं |

# सकारात्मक सोच एवं सकारात्मक प्रयास सफलता के प्रेरक अंग हैं |

# अपने प्रयासों को अपनी मंजिल की दिशा की ओर कुछ इस तरह से प्रस्थित करें ताकि दूसरों के रास्ते में कोई बाधा उत्पन न हो |

# किसी दूसरे को नीचे गिराकर आगे बढ़ने हेतु आपके द्वारा किया गया प्रयास आपको आपकी निगाह में गिरा देता है | इस बात का ध्यान रखें |

# आपके सुनियोजित प्रयास ही आपकी सफलता को सुनिश्चित करते हैं |

आंसू – एक विचार

 आंसू – एक विचार

आंसू


किसी की आँखों से आंसू यूं ही नहीं बह जाया करते | ये ग़मों का वो समंदर बन बहते हैं जिसमे आह का एक ज्वार सा उठता है जो संवेदनाओं के महल को धराशायी कर उस व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अनुचित प्रयासों की परिणिति के रूप में जीवन भर रुलाती है | कहते हैं कोशिश यह होनी चाहिए कि हम किसी के दिल को पीड़ा या गम के सागर में न डूबोयें यदि ऐसा होता है तो हम यह मानें कि हमने मानवीय संवेदनाओं को अपने जीवन में तिलांजलि दे दी है | किसी की आँखों में आंसू आना उसके भीतर चल रहे द्वंद को समझ पाना आसान नहीं है |

आंसू ख़ुशी के हो तो दुआएं बन उभरते हैं यदि ये आंसू किसी , शाब्दिक प्रहार या किसी अनैतिक कार्य की परिणिति होते हैं तो उस व्यक्ति को भीतर तक कष्ट देते हैं जिसे इस पीड़ा से होकर गुजरना पड़ा है | हो सके तो किसी की राह का पत्थर चुन देखो न कि किसी की राह का रोड़ा बनकर खड़े हों |

आंसू जब बहते हैं तो आह का एक समंदर सा रोशन कर जाते हैं जिसके ज्वार में सब कुछ समाप्त हो जाता है डूब जाता है | किसी की आह लेना यानी खुद को जीवन के अनचाहे अंत की ओर प्रस्थित करना है | हमारी कोशिश ये हो कि हमारा जीवन किसी की आह की परिणिति न हो और न ही हम किसी के जीवन में आंसू का सागर निर्मित करें | हम मानवीय संवेदनाओं को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना लें और दूसरों के ग़मों में शामिल हों और इस जिन्दगी का जीने लायक बना लें |

धर्म और आध्यात्म – एक विचार

 धर्म और आध्यात्म – एक विचार

धर्म और आध्यात्म


@ धर्म और आध्यात्म में से यदि किसी एक को चुनना हो तो तुम आध्यात्म को चुनो , धर्म स्वयं ही तुम्हारी जिन्दगी का हिस्सा हो जायेगा |

@ यदि धर्म में तुम्हारा अटल विश्वास है तो अपने जीवन को साधने के लिये आध्यात्म को एक शस्त्र के रूप में जीवन का हिस्सा बना लो मुक्ति संभव हो जायेगी |

@ धार्मिक कर्मकांड मानसिक एवं आत्मिक शांति के लिए अतिआवश्यक हैं ये मानव मन को पवित्र कर मानव सेवा की भावना से ओतप्रोत करते हैं इन्हे अंधविश्वास से जोड़ना मूर्खता है | श्रीमदभगवद्गीता में इसका उल्लेख है |

@ एक पुण्य आत्मा धर्म और आध्यात्म की एक अनुपम कृति है |

@ धर्म और आध्यात्म का मिलन ही मानव को मोक्ष द्वार की ओर प्रस्थित करता है |

@ स्वयं को संस्कृति और संस्कारों के आँचल तले पुष्पित करो | आध्यात्म स्वतः ही तुम्हारी जिन्दगी का हिस्सा हो जाएगा |

@ मानव सेवा जब तुम्हारे जीवन का लक्ष्य हो जाएगा तुम स्वतः ही धर्म और आध्यात्म की ओर प्रस्थित हो जाओगे |

सदविचारों की लड़ियाँ

 सदविचारों की लड़ियाँ

सदविचार


1. कामनाओं में उलझना , खुद को परमात्मा से दूर ले जाना है |

2. जीवन का लक्ष्य आत्मबोध हो कामनाएं नहीं |

3. कर्मप्रधान आचरण भाग्य को पोषित करता है |

4. आपके अधिकारों का सही दिशा में प्रयोग आपको कर्तव्यपरायण सिद्ध करता है |

5. औचित्यपूर्ण कार्य पर समय का सदुपयोग ही सफलता की कुंजी है |

6. उत्कर्ष और पराभव जीवन की दो स्थितियां हैं जिनका सामना हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में करना पड़ता है |

7. ब्रह्म चाहे आकार से सुशोभित हो या निराकार , उसे पाना ही मोक्ष है |

8. संस्कारों से पोषित चरित्र समाज को दिशा देते हैं एवं प्रेरणा का स्रोत होते हैं |

9. संस्कृति और संस्कारों पर विश्वास धर्म पर विश्वास को बल देता है |

10. जीवन का प्रथम उद्देश्य चारित्रिक परिपक्वता होना चाहिए |

11. सार्थक प्रयास ही आपको आपकी मंजिल की ओर अग्रसर होने में सहायक होते हैं |

सद्विचार

 सद्विचार

किसी भी कार्य को आरंभ करने से पहले ही उसके पूर्ण होने का सुस्वप्न अवश्य देखें यह आपके आत्मबल मे वृद्धि कर आपको सफ़लता के चरम पर पहुंचाने में सहायक होगा l

सद्विचार

 सद्विचार

आत्म मंथन या आत्म चिंतन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो अनायास या जान बूझकर की गयी गलतियों का बोध कराते हुए आपको उत्तम दिशा की ओर अग्रसर करने में आपकी सहायक होती है l एक निश्चित अंतराल पर आत्म चिंतन अवश्य करते रहा करें l