Wednesday, 6 October 2021

हर एक चरित्र

 हर एक चरित्र 


कामातुर, व्यभिचारी विचारों से पोषित 

हो रहा हर एक चरित्र


देह कामना , हो गयी अभिलाषा 

इसे ही जीवन का उद्देश्य ले जी रहा हर एक चरित्र 


कातर आँखों से भीतर तक 

बींधता स्त्री तन की सौन्दर्यता 


संताप नहीं उसे , इस पथ पर बढ़ने का 

क्या अवैधानिक, क्या अनीतिसंगत 


आकांक्षाओं के समंदर में गोते लगाता 

डूबता, उतराता , सँभालने की असफल कोशिश 


कायदे , रीति , नियमों पर मिटती डालता 

बेशर्मों सा इठलाता 


कामातुर, व्यभिचारी विचारों से पोषित 

हो रहा हर एक चरित्र


देह कामना , हो गयी अभिलाषा 

इसे ही जीवन का उद्देश्य ले जी रहा हर एक चरित्र 



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