हर एक चरित्र
कामातुर, व्यभिचारी विचारों से पोषित
हो रहा हर एक चरित्र
देह कामना , हो गयी अभिलाषा
इसे ही जीवन का उद्देश्य ले जी रहा हर एक चरित्र
कातर आँखों से भीतर तक
बींधता स्त्री तन की सौन्दर्यता
संताप नहीं उसे , इस पथ पर बढ़ने का
क्या अवैधानिक, क्या अनीतिसंगत
आकांक्षाओं के समंदर में गोते लगाता
डूबता, उतराता , सँभालने की असफल कोशिश
कायदे , रीति , नियमों पर मिटती डालता
बेशर्मों सा इठलाता
कामातुर, व्यभिचारी विचारों से पोषित
हो रहा हर एक चरित्र
देह कामना , हो गयी अभिलाषा
इसे ही जीवन का उद्देश्य ले जी रहा हर एक चरित्र
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