Monday, 3 August 2020

पीर दिल की भुला के मुस्करा ए जिन्दगी


पीर दिल की भुला के मुस्करा ए जिन्दगी

गम और खुशियाँ जिन्दगी के पाक दामन के हैं किस्से
पीर दिल की भुला के मुस्करा ए जिन्दगी

क्यूं कर खुद पर एतबार नहीं तुझे ए जिन्दगी
बीच मझधार उम्मीद की लौ जला ए जिन्दगी

क्यूं कर है तुझे खुशियों से है इतनी मुहब्बत
ग़मों के समंदर के बीच खुद को संवार ए जिन्दगी

दीपक की लौ देती है कुछ सिला ए मेरे दोस्त
दूस्रोंन के पाक दामन को खुशियों न से सजा ए जिन्दगी

गिरने  - उठने का खेल ताउम्र है चलता रहता
गिरने के बाद फिर उठ खड़े होने का एहसास जगा ए जिन्दगी

पत्ते को साख से गिरना है एक दिन , ये उसे है मालूम
आंसुओं के समंदर से उम्मीद की आस जगा ए जिन्दगी

क्यूं कर टूट जाए ये रिश्तों की लड़ी
सबके दिलों में मुहब्बत का एहसास जगा ए जिन्दगी

क्यूं कर इंसानियत की राह पर पसर जाए सन्नाटा
गिरतों को उठाने का जज्बा जगा ए जिन्दगी

क्यूं कर पिए जा रहे हैं वो जाम पर जाम
जिन्दगी से मुहब्बत करने का सिला सिखा ए जिन्दगी

क्यूं कर कुदरत से खिलवाड़ को कर लिया उन्होंने अपनी जिन्दगी का सबब
कोरोना के इस दौरे – सुनामी से लोगों को बचा ए जिन्दगी


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