समय की रेखा पर . बदलती नारी
समय की असहजता को , पीछे छोड़
स्वयं को मुखरित , करती नारी
समय की रेखा पर , बदलती नारी
सामाजिक बेड़ियों को , पीछे छोड़ती
वर्तमान सामाजिक परिवेश से . आंखें मित्राती
सामाजिक कुरीतियों को . हराती नारी
समय की रेखा पर , बदलती नारी
रोशन करती जिंदगियां . खुशियाँ बनकर
अपने दामन में समेटे , प्यार का समंदर
समर्पण का भाव जगाती नारी
समय की रेखा पर , बदत्नती नारी
कहीं बहन , कहीं पत्नी , तो कहीं बेटी
खुद को जिन्दगी के , हर पालने में झुलाती
हर एक चरित्र में , एहसास जगाती नारी
समय की रेखा पर , बदत्नती नारी
कभी गीत बनकर संवरती, कभी गज़ल हो जाती
हर एक आरजू उसकी , उसका धर्म हो जाती
संस्कृति ऑर संस्कारों की माला में , खुद को पिरोती नारी
समय की रेखा पर . बदलती नारी
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