Tuesday 23 January 2018

नारी


समय की रेखा पर . बदलती  नारी

समय की असहजता को , पीछे छोड़
स्वयं को मुखरित , करती नारी

समय की रेखा पर , बदलती  नारी
सामाजिक बेड़ियों को , पीछे छोड़ती

वर्तमान सामाजिक परिवेश से . आंखें मित्राती
सामाजिक कुरीतियों को . हराती नारी

समय की रेखा पर , बदलती नारी
रोशन करती जिंदगियां . खुशियाँ बनकर

अपने दामन में समेटे , प्यार का समंदर
समर्पण का भाव जगाती नारी

समय की रेखा पर , बदत्नती नारी
कहीं बहन , कहीं पत्नी , तो कहीं बेटी

खुद को जिन्दगी के , हर पालने  में झुलाती 
हर एक चरित्र  में , एहसास जगाती नारी

समय की रेखा पर , बदत्नती नारी
कभी गीत बनकर संवरती, कभी गज़ल  हो जाती

हर एक आरजू उसकी , उसका धर्म हो जाती
संस्कृति ऑर संस्कारों की माला में , खुद को पिरोती नारी

समय की रेखा पर . बदलती  नारी




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