Thursday, 12 January 2017

जिन्दगी की धूप-छाँव

जिन्दगी की धूप-छाँव

जिन्दगी की धूप - छाँव को अपना मुकद्दस खुदा समझें
जिन्दगी में ग़मों से डरकर , पीछा छुडाएं क्यों

इस दुनिया में शोहरत के पीछे , भागते हैं लोग
खुदा की निगाह में शोहरत हो . कुछ ऐसा करें

दूसरों के महलों को , निहारने में क्या रखा है
अपना खुद का आशियाँ महलों सा रोशन हो . कुछ ऐसा
करें

'एक अजीब सी खामोशी के तले . दबे पड़े है लोग
दिल का दर्द जुबान बयाँ करने लगे, कुछ ऐसा करें

दो चार आंसू पोछ देना नाकाफी है . इस जिन्दगी के लिए
हर एक चेहरे पर खुशियाँ महके , कुछ ऐसा करें

जिन्दगी की धूप - छाँव को अपना मुकद्दस खुदा समझें
जिन्दगी में ग़मों से डरकर , पीछा छुड़ायें क्यों

इस दुनिया में शोहरत के पीछे , भागते हैं लोग
खुदा की निगाह में शोहरत हो . कुछ ऐसा करें


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