Tuesday, 20 December 2016

चंद एहसास


चंद एहसास

मैं कब कवि और शायर हो गया , इसका मुझे एहसास ही हुआ
मेरे दोस्तों , तुम्हारी ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया

खिदमत उस खुदा की , और उसके बन्दों की
इसी मकसद को लिए , जी रहा हूँ मैं

दामन में सबके खुशियाँ , मेरे अल्ला हज़ार देना
बेज़ार जी रहे हैं जो , उन्हें खुशियाँ हज़ार देना

मुसाफिर चला है खोज में , अपनी मंजिल
खुदा उसका रहबर हो , ये आरज़ू है मेरी

वंदनाउसकी  करता हूँ , आज भी मैं
कभी वो खुदा रहे हैं , मेरी मुहब्बत का

वंदनातुझको भूल जाऊं , यह आरज़ू नहीं है
मुहब्बत की बातों को तुम , खेल समझना

मुहब्बत की कोई सुबह , और कोई शाम नहीं होती
ये तो वफ़ा  -   - खुदाई है , कोई जाम तो नहीं

वफ़ा के बदले वफ़ा मिले , ये आरज़ू कर
ये दुनिया मौकापरस्तों से , पट चुकी है

मैं कब कवि और शायर हो गया , इसका मुझे एहसास ही  हुआ
मेरे दोस्तों , तुम्हारी ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया

खिदमत उस खुदा की , और उसके बन्दों की
इसी मकसद को लिए , जी रहा हूँ मैं





No comments:

Post a Comment