Monday, 19 December 2016

अच्छे दिन अब कब आयेंगे (व्यंग्य)



अच्छे दिन अब कब आयेंगे (व्यंग्य)

अच्छे दिन अब कब आयेंगे
चेहरे अब कब मुस्कायेंगे

दिल की पीर मिटेगी अब कब
रोते अब कब हंस पायेंगे

नोटबंदी में सोचा था
लोग अपनी जान गंवाएंगे

खुद को नेता कहने वाले 
बैंक की लाइन में कब नज़र आयेंगे

बैंक से पैसे मिल नहीं रहे
मुन्नी की शादी हम कैसे कर पायेंगे

चाय के विषय पर हो रही बहस
पानी घर में होगा, तो चाय की चुस्की ले पायेंगे

गरीब सफ़ेद धन को तरसते
काला धन कहाँ से ले आयेंगे

काला धन और काला दिल
इसकी बात करें क्या भैया

स्विट्ज़रलैंड में पड़े काले धन का
दर्शन हमें करा दो भैया

कालेधन के कुबेरों के चक्कर में
पिसती जा रहे गरीब की दुनिया

काला धन तो एक बहाना है
अमीरों को और अमीर बनाना है

गरीब तरसते दो वक़्त की रोटी
अच्छे दिन का गीत गुनगुनाना है






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