कोरोना
पीर दिल की सुनाऊँ कैसे , दर्दे - दिल से मिलाऊँ कैसे
कोरोना की इस त्रासदी से , इस जहां को
बचाऊँ कैसे
कलम मेरी हज़ारों – हज़ारों आंसू रो रही
है
पीर दिलों की मिटाऊँ कैसे , कोरोना से
इस जहां को बचाऊँ कैसे
चीखों का एक समंदर रोशन किया एक वायरस
ने
माँ को बेटे से , भाई को बहिन से मिलाऊँ
कैसे
आँखों में बस रहा डर , बढ़ रही दिलों की
धड़कन
अजब इस डर के भंवर में , ढाढस मैं बंधाऊं कैसे
अजब सन्नाटा पसरा हर शहर हर गली में ,
गीत मिलन के कैसे हों रोशन
रुक रही सबकी साँसें पल
- पल , जीवन ज्योति जगाऊँ कैसे
देवालयों में पसरा सूनापन, मस्जिद चर्च
गुरद्वारे भी सूने
प्रभु कृपा हो जाए हम सब पर, तुम्हें
प्रभु मैं मनाऊँ कैसे
आँगन सूने दिल भी सूने , रिश्तों के
गलियारे सूने
बाट जोह रही उस माँ को , ढाढस मैं
बंधाऊं कैसे
बहनों का श्रृंगार है रूठा , सीमा पर
जवान है डटा
रिश्तों की इस पावनता के गीत मैं सजाऊँ कैसे
bahut sahi rachna hai sir
ReplyDeleteशुक्रिया जी
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