Monday, 4 December 2017

मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो

मैं चाहता हूँ एक नए भारत का उदय हो

मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो
जहां पले  घर - घर , संस्कार और संस्कृति हो

घर - घर में राम और लखन हों , दशरथ से पिता हों
माता हो केवल एक , कौशल्या सी मातृत्व की धनी हों

न हो कोई वनवास , मिलकर रहते सभी हों
रावण से मुक्त हो देश, कंस को न कहीं जगह हो

बच्चे भाई को भ्राता पुकारें ,  पिता को पिताश्री पुकारें
माँ के संबोधन में , दिल के तार सब जुड़े हों

गलियों में खेलें कान्हा , मटकी से खींचें माखन
मन में राम - राम हो, दिल कृष्ण - कृष्ण हों

पीर पराई हमारी हो जाए, हमारी खुशियाँ दूसरों के ग़मों
का हिस्सा हों
हर घर एक देवालय हो , हर घर एक मस्जिद हो


 गिर पड़े तो उठा ले कोई, रोये तो चुप करा दे कोई 

'एक ऐसे भारत का उदय हो, हर एक व्यक्तित्व शालीन हो


बह हर एक घर के आगे गंगा, भारत ऐसा एक नगर हो

माँ - बाप की सेवा हर एक का धर्म हो जाए, ऐसा भारत
बसर हो


चाणक्य से हों राजनीतिज्ञ , देश हित परम धर्म हो

घोटालों , भष्टाचारियों  , चापलूसों को न यहाँ जगह हो


हर एक दिल में हो देश प्रेम, देश हित मर मिटने का ज़ज्बा
हो

हर - गली हर - घर , हर एक दिल में वन्दे मातरम्‌ हो


मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो

जहां पले घर - घर ,  संस्कृति और संस्कार हों 






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