Monday 4 December 2017

नज़रों के सामने से


नजरों के सामने से

नज़रों के सामने से मुस्कुरा के चल दिए , वो कुछ इस तरह
अपनी मुहब्बत का जाम , पिला के कुछ इस तरह

उनकी बेबाक अदाओं ने खींचा , हमे उनकी ओर कुछ इस तरह
अपनी अदाओं के जाल में कैद , कर रहे हों कुछ इस तरह

मुहब्बत की वेवाकियों का , हमें इल्म न था.
उनकी मुहब्बत के पाश में , हम फंसते गए कुछ इस तरह

मुहब्बत के अंजाम से नावाकिफ़ हो , बढ़े जा रहे थे हम कुछ इस तरह
एहसास तब हुआ जब जिन्दगी, आांसुओं का समंदर हो गयी कुछ इस तरह

उन चंद लम्हों को अपनी जिन्दगी का मकसद कर , जी रहे कुछ इस तरह
एक दिन तो क़यामत का आयेगा , जब रूवरू हंगे हम कद इस तरह

उनके हर एक सितम को , हमने अंजामे - मुहब्बत समझा
पाक इश्क की राह में तनहा , जिन्दगी गुजार रहे हैं हम कुछ इस तरह

नज़रों के सामने से मुस्कुरा के चल दिए , वो कुछ इस तरह
अपनी मुहब्बत का जाम , पिला के कुछ इस तरह

उनकी बेबाक अदाओं ने खींचा , हमे उनकी ओर कुछ इस तरह
अपनी अदाओं के जाल में कैद , कर रहे हों कुछ इस तरह





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