गधा चालीसा - व्यंग्य
गधों को ये मालूम न था , उनके भी दिन फिरेंगे
उन पर भी लिखी जायेंगी कवितायें, वे नेताओं की जुबां पर चढ़ेंगे
नेताओं की गधों पर बकबक का , गधे मज़ा ले रहे हैं
खुद को मीडिया पर पाकर , खुश हो रहे हैं
एक ज़माना था , इनको कोई पूछता न था
लोग आज गधे पर , डिबेट कर रहे हैं
गधों के दिन भी आज, फिरने लगे हैं
मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमन्त्री तक के ,लबों पर ये सजने लगे हैं
खुद को नेताओं के बीच पाकर , ये खुश हो रहे हैं
नेताओं और गधों के बीच का अंतर घटता देख ,ये खुशी से लबरेज
हो रहे हैं
कुर्सी की दौड़ ने नेताओं को ,कहाँ तक गिराया है
शेर, चीता , भालू छोड़, इन्हें गधे से मिलाया है
सीमा पर मरते जवानों की , नेताओं को सुध नहीं
कर्ज से मरते किसानों की ,इनको परवाह नहीं
राग कुर्सी का अलापते , कुर्सी के लोभी नेता
एक दूसरे को गधा बताने से ,हिचकते नहीं नेता
हमको खुशी इस बात की , गधों के दिन फिरे भैया
इस भटकती राजनीति की नैया को, अब गधे ही संभालें
भैया
मानव रूपी गधों , अब शर्माने की जरूरत नहीं तुमको
नेताओं की जमात में शामिल होने से ,डरने की जरूरत नहीं
तुमको
हम तो कहते हैं मानव रुपी गधे ,अब तुम पढ़ना लिखना
छोड़ो
हो सके तो तुम की ,इस नेतागिरी की रेस मैं दौड़ो
पर मेरे भैया एक बात का ,तुम रखना ख्याल
नेता बेशक हो जाएँ गधे, पर वोटर गधे नहीं होते भैया
हमें तुमसे उम्मीद है तुम, गधों की बकबक में शामिल नहीं
होगे
जीतोगे विश्वास ल्रोगों का, कुर्सी से मोह छोड़ोगे
देश सेवा, समाज सेवा, तुम्हारी जिन्दगी का मकसद होगा
बेशक कुर्सी पर बैठने वाला , मानव रुपी गधा होगा
हम इसी उम्मीद से ये , गधा चालीसा ख़त्म करते हैं
देश को जाति , धर्म से ऊपर समझते हैं
मेरे गधे रुपी नेताओं , इस देश को बचाकर रखना
मिट जाए शख्सियत तुम्हारी, पर इस देश पर खुद को
न्योछावर करना
गधों को ये मालूम न था , उनके भी दिन फिरेंगे
उन पर भी लिखी जायेंगी कवितायें, वे नेताओं की जुबां पर चढ़ेंगे
नेताओं की गधों पर बकबक का , गधे मज़ा ले रहे हैं
खुद को मीडिया पर पाकर , खुश हो रहे हैं
एक ज़माना था , इनको कोई पूछता न था
लोग आज गधे पर , डिबेट कर रहे हैं
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