Thursday 5 November 2015

वक़्त के दरिया के पार जो उतरना जाने

वक़्त के दरिया के पार जो उतरना जाने 

वक़्त के दरिया के पार जो उतरना जाने 
मंजिल उसको नसीब होती है

इंसानियत को जो अपना मजहब माने
जिन्दगी उसको नसीब होती है

चार वक़्त की जो नमाज़ करना जाने 
इबादत उसको नसीब होती है

दूसरों के गमों को जो अपना माने
जिन्दगी उसको नसीब होती है

वक़्त की पाकीजगी में जो  ढलना  जाने 
शोहरत उसको नसीब होती है

दूसरों के दर्दे - गम को जो अपना माने
जिन्दगी उसको नसीब होती है

वक़्त की नाव में बैठ, जो पार उतरना जाने 
अमानते- इल्म उसको नसीब होती है

दूसरों के गम में जो शरीक हो . जो खुद के ग॒मों को भूले
जिन्दगी उसको नसीब होती है












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