Monday, 20 July 2015

बिटिया है घर की रौनक

बिटिया है घर की रौनक

बिटिया है घर की रॉनक, बिटिया है घर का गहना
बिटिया से लागे है , जग सारा अपना
बिटिया से घर हो रोशन , बिटिया से घर हो मंदिर
बिटिया जो रो पड़े तो , जग लागे सूना--सूना
मुस्कान उसकी पल--पल खुशियाँ हज़ार देती
कोयल सी उसकी बोली , मन मोहती वो सबका
चश्मो-चिराग है वो, सब चाहते हैं उसको
उसके बगैर जन्नत भी , लागे सूना--सूना
उसकी ठिठोलियाँ हैं, सबके मन को भाये
रूठ जब वो जाए , सब लागे सूना--सूना
आँखों मैं उसकी बसते ,हैं हज़ार सपने
स्वयं को सजाती , संवारती है बिटिया
बिटिया जो घर मैं हो तो , घर हो जाए गुलशन
बिटिया से खिल उठे है , घर का कोना--कोना
बेटी है घर की जीनत , बेटी से जहां ये महके
बेटियों से जग हो रोशन , खिलता चमन ये अपना
बेटियों ने इस जहां को ,संस्कार हैं सिखाये
बेटी संस्कारी हो तो ,कहलाये घर का गहना
बेटी में देखता हूँ, रोशन मैँ अगली पीढ़ी
आधुनिकता के समंदर मैं जो, जों गोता न लगाएं बेटियाँ

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