मानव
जिंदगी भर
कांटे बोकर
फूलों की
कामना
करता
यह मानव
कितना बेचारा
व
असहाय
नज़र आ रहा है
रचता साजिशें
करता घृणा
देखता बुरी नज़रों से
फिर भी
प्रेम की आस में जीता
यह मानव
कितना बेचारा
व असहाय नज़र
आता है
चाहता है
गिराकर
सभी को
पीछे छोड़कर
सभी को
वर्तमान से खेलता
असत्य का दंभ भरता और
उज्जवल भविष्य
की कामना करता
यह मानव
कितना बेचारा व असहाय नज़र आता है
शक्ति व ताकत के परचम तले असहायों पर राज़ करता
अनैतिकता में नैतिकता का रंग भरने
की नाकाम
यह मानव
कितना बेचारा
व असहाय नज़र आता है
संतुष्टि की चाह में
आये कोई भी राह में रौंदकर
मानव रुपी पुष्प को
अपने जीवन में पुष्प
खिलाने की
नाकाम
कोशिश
करता
कितना बेचारा व असहाय नज़र आता है
मसल कर
दूसरों की
भावनाओं को
जीवन में
दूसरों के
अन्धकार भर
रौशनी से
पूर्ण
करने की
नाकाम
कोशिश
करता
यह मानव
कितना
बेचारा व असहाय नज़र आता है
शक्ति का सदुपयोग
दूसरों के जीवन में
रौशनी
बिखेरना
जिसका सपना
होना था
जला
दूसरों के जीवन में
उजाला करना
जिसके जीवन के
उद्देश्य होना था
जहां ये सब
होता
वही मानव होता
वही मानव होता
वही मानव होता
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